अजय नीमा, उज्जैन। धार्मिक नगरी उज्जैन में यूँ तो कई प्राचीन और विख्यात मंदिर हैं, लेकिन करवा चौथ माता का एक अनूठा मंदिर यहां की ख्याति में चार चाँद लगाता है। इंदौर-उज्जैन फोरलेन से लगे उन्हेल बायपास के समीप जीवनखेड़ी गाँव में खेत के बीच मोक्षदायिनी माँ शिप्रा के तट पर स्थित यह मंदिर अपनी विशेष परंपरा के लिए दूर-दूर तक जाना जाता है। यह प्राचीन मंदिर समाजसेवी डॉ. कैलाश नागवंशी ने अपनी माँ लक्ष्मीदेवी की स्मृति में वर्ष 2000 में निजी ज़मीन पर बनवाया था।

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इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह साल में सिर्फ़ एक बार, करवा चौथ के दिन ही खोला जाता है। गाँव वालों का मानना है कि चौथ माता 12 महीने मंदिर में विश्राम करती हैं, इसलिए आम श्रद्धालुओं के लिए दर्शन बंद रहते हैं। मंदिर के भीतर सास-बहू यानी पार्वती और ऋद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं स्थापित हैं। साथ ही, भाई-बहन यानी लाभ-शुभ और संतोषी माता की प्रतिमाएं भी यहाँ मौजूद हैं। करवा चौथ के दिन हज़ारों की संख्या में सुहागिन महिलाएं यहाँ पहुँचकर अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। मंदिर के सेवक नागवंशी के अनुसार, माता करवा चौथ पर तीन रूपों में दर्शन देती हैं- सुबह बाल रूप में, दोपहर में किशोरी रूप में और शाम को एक और रूप में। 

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मंदिर संस्थापक डॉ. कैलाश नागवंशी द्वारा इस वर्ष करवा चौथ पर सुहागिन महिलाओं को माता के आशीर्वाद के रूप में कुछ ख़ास प्रसाद वितरित किया जा रहा है। प्रसाद के रूप में चुनरी, कामाख्या माता का कुमकुम, और अभिमंत्रित रुद्राक्ष भेंट किए जा रहे हैं। बताया जाता है कि यह प्रसाद, जिसमें ख़ास कामाख्या का सिंदूर, नेपाल का रुद्राक्ष व सिका (सिक्का) शामिल है, घर में रखने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इसी आस्था के चलते दूर-दूर से श्रद्धालु यह विशेष प्रसाद लेने और माता के दर्शन करने पहुँचते हैं।

मध्यप्रदेश का पहला ऐसा मंदिर

मंदिर के संस्थापक डॉ. नागवंशी का मानना है कि मध्यप्रदेश में यह पहला मंदिर है, जिसकी प्रेरणा उनकी दिवंगत माँ लक्ष्मीदेवी की स्मृति और पत्नी उषा नागवंशी के सपने से मिली। डॉ. नागवंशी के अनुसार, माता ने उनकी पत्नी को सपने में ऐसा मंदिर बनाने को कहा था जो कहीं और न हो। पिछले वर्ष करवा चौथ पर लगभग 15 हज़ार श्रद्धालुओं ने दर्शन किए थे, और इस वर्ष लगभग 20 हज़ार श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है।

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