वाराणसी. भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी अद्भुत है. इसकी मान्यता और इस नगरी का महत्व किसी से छिपा नहीं है. यहां पर कई पौराणिक मंदिर हैं. जिनकी प्राचीन मान्यताएं हैं. इसी में से एक मंदिर है मां अन्नपूर्णा का. जो काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है. लेकिन यहां पर एक ऐसा दरबार है जिसका दर्शन साल में केवल पांच दिन ही होता है. बाकी दे दिनों में इस दरबार के कपाट बंद रहते हैं.

हम बात कर रहे हैं मां अन्नपूर्णा मंदिर के ऊपर स्थित स्वर्ण दरबार की. जहां पर भगवती अन्नपूर्णा भू देवी, माता लक्ष्मी और भगवान शंकर के साथ विराजमान हैं. इस दरबार में विराजित स्वर्ण प्रतिमाओं का अलौकिक दर्शन होता है. जहां माता अन्नपूर्णा दानदाता के रूप में बैठीं हैं. वहीं काशी के पालक बाबा विश्वनाथ स्वयं एक भिक्षु के रूप में मां से भिक्षा मांग रहे हैं. माता के दोनों तरफ भू देवी और मां लक्ष्मी विराजमान हैं.

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साल में पांच दिन ही खुलते हैं कपाट

इस दरबार के दर्शन आप केवल साल में पांच दिन ही कर सकते हैं. दीपावली से लेकर अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) तक स्वर्ण दरबार के दर्शन होते हैं. इसके बाद कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं. धनतेरस के दिन मंगला आरती के साथ दर्शन शुरू होता है जो अन्नकूट तक चलता है. अन्नकूट के दिन 56 भोग लगाया जाता है. जिसे भक्तों में वितरित करने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.

प्रसाद में बांटा जाता है रुपया

इन पांच दिनों में जो भी भक्त यहां पर दर्शन के लिए आता है उसे प्रसाद स्वरूप में खजाना बांटा जाता है. सालभर मंदिर में जो सिक्के चढ़ाए जाते हैं वो सभी भक्तों में वितरित कर दिया जाता है. यहां पर धनतेरस से शुरू होने वाले पांच दिनों के दर्शन के दौरान भक्तों को विशेष प्रसाद के रूप में ‘लव और सिक्के’ बांटे जाते हैं. यह प्रसाद लोगों को उनकी समृद्धि और धन की कोठरी में रखने के लिए दिया जाता है, ताकि देवी अन्नपूर्णा की कृपा पूरे साल बनी रहे. लोग इसे अपनी धन की कोठरी या रसोई में रखते हैं. जिससे समृद्धि बनी रहती है.

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काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं भगवान शिव और माता पार्वती

कहते हैं कि काशी वो नगरी है जहां पर भगवान शंकर काशी विश्वेश्वर के रूप में भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं. वहीं भगवती पराम्बा मां पार्वती माता अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का उदर पोषण करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि काशी में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रहता. मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती दोनों प्रतिज्ञाबद्ध हैं. दोनों की प्रतिज्ञा है. जहां भगवान शंकर ने देवी पार्वती से कहा है कि हे देवी जब तक इस धराधाम पर कोई भी जीव है, तब तक आप अन्नपूर्णा बनकर उसका उदर पोषण करेंगी. वहीं देवी पार्वती ने भगवान शिव से कहा है कि आप यहां हर प्राणी को मोक्ष प्रदान करेंगे.