नई दिल्ली। दरअसल ये बेहूदा ही नहीं अमानवीय और क्रूर भी है. यह असंवेदनशील मज़ाक़ आजकल की निरंतर अश्लील व संस्कारों की मज़ाक़ उड़ाती तथाकथित स्टैंड-अप प्रस्तुतियों की ही झलक भर है. गनीमत है कि यह घटियापन किसी पुरुष प्रस्तुतकर्ता ने नहीं किया अन्यथा सारे आयोग जाग जाते. हंसने वालों भी पर लानत… यह गुस्सा कवि कुमार विश्वास ने एक महिला स्टैंडअप कॉमेडियन की प्रस्तुत पर व्यक्त किया, जो बेशर्मी से वेश्यावृत्ति को जायज ठहरा रही थी.