नई दिल्ली। केजरीवाल सरकार के पर्यावरण एवं विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग में बायो डी-कंपोजर से पराली गलाने से संबंधित ‘थर्ड पार्टी ऑडिट रिपोर्ट’ सौंप दी है. केंद्र सरकार की एजेंसी वाप्कोस ने बायो डि-कंपोजर के छिड़काव का पराली पर पड़ने वाले प्रभाव का थर्ड पार्टी ऑडिट किया था. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अधीन काम करने वाली वाप्कोस एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बायो डि-कंपोजर को पराली गलाने का एक बेहतर समाधान बताया है.

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दूसरे राज्यों में भी लागू करने की मांग

वरिष्ठ अधिकारियों ने केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से बायो डि-कंपोजर तकनीक को दूसरे राज्यों में भी लागू करने की मांग की है. वहीं पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वे जल्द ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मिलेंगे और उन्हें वाप्कोस की ऑडिट रिपोर्ट सौंपेंगे. हर साल दिल्ली को पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली की समस्या से जूझना पड़ता है. उन्होंने कहा कि हम केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से इस संबंध में हस्तक्षेप करने और समय रहते पड़ोसी राज्यों में भी बायो डि-कंपोजर का उपयोग कराने की मांग करेंगे.

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वाप्कोस की ऑडिट रिपोर्ट का विस्तार से जिक्र

 

दिल्ली सरकार के पर्यावरण एवं विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने आज केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की. उन्होंने पराली पर किए गए बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के प्रभाव के संबंध में केंद्र सरकार की एजेंसी वाप्कोस द्वारा किए गए ऑडिट रिपोर्ट को सौंपा. अधिकारियों ने थर्ड पार्टी वाप्कोस की ऑडिट रिपोर्ट का विस्तार से जिक्र किया है. जिसमें बताया गया है कि केंद्र सरकार की एजेंसी वाप्कोस ने दिल्ली के 39 गांवों में जाकर 310 किसानों के करीब 1935 एकड़ गैर-बासमती धान के खेतों में पूसा बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के प्रभाव को अपनी ऑडिट रिपोर्ट में शामिल किया है. वहीं दिल्ली सरकार के विकास विभाग ने भी किसानों द्वारा बायो डि-कंपोजर के उपयोग पर सकारात्मक प्रभाव और प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए एक फील्ड सर्वेक्षण किया था, जो बहुत ही उत्साहजनक था.

दिल्ली के 39 गांवों में जाकर सर्वे

 

अधिकारियों ने बताया है कि दिल्ली सरकार के विकास मंत्री ने दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के समक्ष एक याचिका दायर की थी, ताकि दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने के स्थान पर पराली या फसल के अवशेषों को समाप्त करने के लिए बायो डि-कंपोजर का उपयोग करने का निर्देश दिया जा सके. याचिका मिलने के बाद वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर आयोग द्वारा बायो डि-कंपोजर के प्रयोग के बाद उसके प्रभाव के थर्ड पार्टी इम्पैक्ट एसेसमेंट (मूल्यांकन) की इच्छा जताई थी.

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यह थर्ड पार्टी इम्पैक्ट असेसमेंट वाप्कोस की एक टीम ने किया, जिसमें इसके सलाहकार शामिल हैं, जो सीआईएई भोपाल के पूर्व निदेशक और नई दिल्ली स्थित आईसीएआर पूसा के पूर्व-एडीजी, प्रमुख (पीए एंड ए), सलाहकार, अर्थशास्त्री और इस परियोजना के अधिकारी हैं. वाप्कोस ने दिल्ली सरकार द्वारा निःशुल्क उपलब्ध कराए गए पूसा बायो डि-कंपोजर का अपने खेतों में छिड़काव करने वाले चार जिलों के 15 गांवों के 79 लाभार्थी किसानों का फील्ड विजिट कर सर्वेक्षण किया.

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फील्ड विजिट के बाद वाप्कोस की टीम ने यह निष्कर्ष निकाला-

1- 90 फीसदी किसानों ने कहा है कि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद 15 से 20 दिनों में पराली गल जाती है, जबकि पहले पराली को गलाने में 40-45 दिन लगते थे.
2- पहले किसानों को गेहूं की बुआई से पहले 06-07 बार खेत की जुताई करनी पड़ती थी, जबकि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद केवल 1 से 2 बार ही खेत की जुताई करनी पड़ी.
3- मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 05 फीसद से बढ़कर 42 फीसदी हो गई है.
4- मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा 24 फीसदी तक बढ़ गई है.
5- मिट्टी में बैक्टीरिया की संख्या और फंगल (कवकों) की संख्या में क्रमशः 7 गुना और 3 गुना की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
6- मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के कारण गेहूं के बीजों का अंकुरण 17 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया.
7- 45 फीसदी किसानों ने यह स्वीकार किया है कि बायो डि-कंपोजर के इस्तेमाल के बाद डीएपी खाद की मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में 46 किलोग्राम प्रति एकड़ से घटाकर 36-40 किलोग्राम प्रति एकड़ हो गई है.
8- बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गई, जिसके चलते गेहूं की उपज 05 फीसदी बढ़कर 08 फीसदी हो गई.

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