सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लिए अपने हालिया फैसले में राष्ट्रपति को राज्यपाल की तरफ से उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर तीन महीने में फैसला लेने की सलाह दी है. कोर्ट के फैसले के चलते राज्यपाल भी अनिश्चित समय तक विधेयक को लंबित नहीं रख सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले पर केरल के राज्यपाल का बड़ा बयान सामने आया है. गर्वनर राजेंद्र आर्लेकर (Rajendra Arlekar) कहा, अगर संविधान संशोधन का काम भी सुप्रीम कोर्ट करेगा तो फिर संसद और विधानसभाएं किस लिए हैं.
केरल के राज्यपाल ने कहा कि ‘अगर सब कुछ माननीय अदालतों द्वारा तय किया जाता है, तो संसद की जरूरत खत्म हो जाती है. यह न्यायपालिका का अतिक्रमण है. सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपना चाहिए था न कि खंडपीठ इस पर फैसला लेती.’
राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ज्यूडिशियल ओवररीच बताया है यानी कोर्ट का सीमा पार कर कार्यपालिका और विधायिका में दखल देना. उन्होंने कहा राज्यपाल के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की संविधान में समय सीमा नहीं है. केरल के राज्यपाल ने कहा सुप्रीम कोर्ट द्वारा 3 महीने की सीमा तय करना संविधान संशोधन जैसा है. दो जज संविधान का स्वरूप नहीं बदल सकते. न्यायपालिका खुद मामलों को वर्षों लंबित रखती है, ऐसे में राज्यपाल के पास भी कारण हो सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की तरफ से राष्ट्रपति के विचार के लिए रोके गए और आरक्षित किए गए 10 विधेयकों को मंजूरी देने और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए सभी राज्यपालों के लिए समयसीमा निर्धारित की थी.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को तीन महीने में विधेयक पर फैसला लेने की सलाह दी है. कोर्ट ने कहा है कि अगर तीन महीने की समयसीमा में राष्ट्रपति फैसला नहीं लेते हैं तो उन्हें इसकी वाजिब वजह बतानी होगी. इस फैसले के चलते राज्यपाल भी अनिश्चित समय तक विधेयक को लंबित नहीं रख सकेंगे.
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