इमरान खान,खंडवा। मध्यप्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. बावजूद इसके आदिवासी अंचल में सरकार का सिस्टम फेल नजर आ रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं में कमी का फायदा आदिवासी अंचल में झोलाछाप और तांत्रिक उठा रहे हैं. आदिवासी अंचल में अंधविश्वास इतनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया है कि इलाज के नाम पर नवजात से लेकर 10 माह के बच्चों को गर्म सलाखों से दागा जा रहा है. ऐसे ही दो मामले खंडवा जिला अस्पताल में सामने आए हैं. जिसमें सात माह के बालक और 10 माह की बालिका का पहले चचुआ (गर्म सलाख) लगाकर उसका इलाज किया गया. स्थिति गंभीर होने पर परिजन बच्चों को अस्पताल में लेकर पहुंचे.
खंडवा जिला अस्पताल के शिशु रोग वार्ड में तीन दिन पूर्व खालवा ब्लॉक के ग्राम चिमईपुर निवासी सात माह के बच्चे को भर्ती कराया गया. बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो रही थी, जांच में उसे निमोनिया और खून की कमी पाई गई. बच्चे के पेट पर गर्म चिमटे से दाग के निशान थे. बच्चे की मां ने बताया कि पेट में तकलीफ होने के बाद गांव के लोगों ने कहा था कि बड़वा बाबा (तांत्रिक) से चचुआ लगवा लो ठीक हो जाएगा. जिसके कारण चचुआ लगवाया था.
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बच्चे की तबीयत दो दिन तक ठीक रही, फिर आचनक तेज बुखार आना शुरू हो गया. इसलिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. दूसरा मामला खालवा ब्लॉक का है. यहां 11 माह की बालिका को भी सांस लेने में तकलीफ के चलते परिजन जिला अस्पताल लेकर आए. उदियापुरा निवासी बालिका के पेट पर भी गर्म सलाखों से दागने के निशान थे. जिसकी हालत नाजुक है. उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां से उसे इंदौर रेफर करने की तैयारियां चल रही है.
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जिला अस्पताल के एचओडी शिशु रोग विभाग डॉ. प्रमिला वर्मा का कहना है कि इस तरह का इलाज इजाजत साइंस नहीं देता ना ही साइंस की किसी की किताब में इस तरह के इलाज का कोई परमिशन दिया गया है. खंडवा जिला अस्पताल के शिशु रोग वार्ड में दो बच्चों को भर्ती किया है, जिन्हें निमोनिया की शिकायत है और खून की कमी है. बच्चों का इलाज किया जा रहा है. दोनों बच्चों के शरीर पर गर्म सलाख या चिमटे से दागने के निशान भी है. अंधविश्वास के कारण आदिवासी लोग बच्चों का इस तरह से इलाज करवा रहे हैं, जो गलत है.
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