Kharge on Jagdeep Dhankhar: ससंद के शीतकालीन सत्र में दोनों सदनों में हंगामा जारी है. इंडिया गठबंधन (India Alliance) ने उपराष्ट्रपति व राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) पर केन्द्र सरकार के इशारे पर चलने का आरोप लगाते हुए राज्यसभा में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है. इसी बीच ससंद के हंगामे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने सभापति (Chairman) जगदीप धनखड़ पर निशाना साधते हुए विपक्ष की आवाज का गला घोटने का आरोप लगाया है. कांग्रेस (Congress) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर कहा कि लोकतंत्र हमेशा दो पहियों पर चलता है “एक पहिया है सत्तापक्ष और दूसरा विपक्ष. दोनों की जरूरत होती है. सांसदों के विचारों को तो देश तब ही सुनता है जब हाउस चलता है.”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर खरगे ने कहा, “16 मई 1952 को सभापति के रूप में राज्य सभा में पहले सभापति डॉ राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूं. यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल (सभापति जगदीप धनखड़) में पूरी तरह खंडित हो गयी. आज विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब राज्य सभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है.”
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरोप लगाते हुए आगे कहा 10 बिंदुओं का उल्लेख कर राज्यसभा सभापित जगदीप धनखड़ पर पद के दुरुपयोग व संदन गरिमा का ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया है. उन्होनें कहा कि संसद की मर्यादाओं और नैतिकता आधारित परंपराओं का हनन अब राज्य सभा की दिनचर्या बन गई है. प्रजातंत्र को कुचलने और सच को पराजित करने की कोशिश लगातार जारी है. हम संविधान के सिपाही और रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज्यादा दृढ़ हो जाता है. हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं और प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे.”
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है. कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था. सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है. वो अक्सर बीजेपी की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं. वो रोज ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है. आगे कहा कि उन्होंने इस महान पद का दुरपयोग करते हुए, पद पर आसीन होकर, अपने राजनीतिक विचारक – RSS की प्रशंसा की और यहां तक कहा कि “मैं भी RSS का एकलव्य हूं” जो की संविधान की भावना से खिलवाड़ है.
किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है. विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं. जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला बुला कर रूल 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं. विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं. राज्यसभा में स्टेटमेंट पर स्पष्टीकरण की परंपरा थी, वो भी बंद कर दी है.
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