हर्षित तिवारी, खातेगांव। श्रावण मास में भगवान शिव की भक्ति में लीन कांवड़ यात्रियों की आस्था का सफर कहीं जानलेवा न बन जाए। ये सवाल अब प्रशासन के सामने है। कांटाफोड़ से नेमावर तक करीब 60 किलोमीटर की दूरी, तीन थाना क्षेत्रों से गुजरती बस और उस पर बैठे कुल 130 यात्री, जबकि बस की क्षमता केवल 52 की ही थी। बस के अंदर से लेकर छत तक यात्रियों से भरी हुई थी। यात्रियों की मानें तो वह नेमावर नर्मदा तट पर जल भरने पहुंचे हैं, जहां से उनकी कांवड़ यात्रा शुरू होगी।

चौंकाने वाली बात यह है कि यह ओवरलोडेड बस कांटाफोड़ से चलकर तीन पुलिस थानों के सामने से होकर गुजरी, लेकिन कहीं भी रोकने की कोशिश नहीं की गई। बस चालक से पूछने पर उसका जवाब था कि ‘सवारी ज्यादा थी इसलिए छत पर बैठाना मजबूरी था।’ ऐसे सवाल ये उठता है कि क्या प्रशासन और पुलिस ने इस खतरे को अनदेखा किया या जानबूझकर नजरें फेर लीं ?

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सड़क की हालत भी किसी बड़ी दुर्घटना को आमंत्रण देने से कम नहीं है। खातेगांव से दुलवा फाटे तक का रास्ता गड्ढों से भरा हुआ है, जहां ओवरलोड बस के हिचकोले हर पल किसी अनहोनी का डर पैदा करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि कोई बड़ा हादसा हो जाए, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? बस मालिक, पुलिस प्रशासन या जिला अधिकारी ?

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श्रद्धालुओं की जान जोखिम में डालना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की एक भयावह मिसाल भी है। प्रशासन को चाहिए कि इस मामले में सख्त कार्रवाई करे और भविष्य में किसी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए पुख्ता इंतजाम किए जाएं।

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