राजस्थान के सीकर जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध खाटू श्याम जी मंदिर में होली से पहले हर साल फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से द्वादशी तक वार्षिक लक्खी मेले का आयोजन होता है. यहां देश-विदेश से करीब 20 से 25 लाख भक्त बाबा का दर्शन करने के लिए आते हैं. इस साल बाबा का लक्खी मेला आगामी 22 फरवरी से शुरू होगा. पिछले साल हुए हादसे से सबक लेकर इस साल सीकर जिला प्रशासन महीनों पहले से तैयारियों में जुटा है. पुलिस प्रशासन की ओर से इस बार मेले में श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए जाएंगे.

पहली बार लक्खी मेले में ईआरटी और एसडीआरएफ की टीम

मेले की सुरक्षा व्यवस्था इस बार पुलिस प्रशासन के साथ ईआरटी और एसडीआरएफ की टीम भी करेंगी. ताकि इसी भी प्रकार की अप्रिय घटना ना हो. राज्य आपदा प्रबंधन की टीमें 19 फरवरी से खाटू श्याम जी पहुंच चुकी है. दोनां टीमें मेला समाप्ति तक यहीं रहेंगी. Read More – SIP Calculator News : कैसे काम करता है Mutual Fund SIP कैलकुलेटर, जान लीजिए फॉर्मूले की डीटेल …

4000 पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे

लक्खी मेले के लिए इस बार चार हजार पुलिस के जवान तैनात रहेंगे. दो हजार सुरक्षा व सिक्योरिटी गार्ड मंदिर कमेटी की ओर से मेले में लगाए है. कई क्रेन लगाई है ताकि ब्रेक डाउन हो जाने वाली गाड़ियों को तुंरत मौके से हटाया जा सकें.

300 से अधिक सीसीटीवी कैमरे

मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए 300 से अधिक सीसीटीवी कैमरे चप्पे-चप्पे की निगरानी करेंगे. पहली बार डेढ दर्जन ड्रोन कैमरों से पूरे टाइम मेले की मॉनिटरिंग की जाएगी. ताकि देखा जा सकें कि कहां दिक्कत है और तुरंत मदद के लिए पुलिस भिजवाई जा सकें. Read More – Live Concert में Sonu Nigam के साथ हुई हाथापाई, MLA के बेटे के खिलाफ केस दर्ज, सिंगर ने खुद बताया पूरा वाकया …

होली पर इसलिए लगता है खाटू श्याम का लक्खी मेला

फाल्गुन मास में हर साल लक्खी मेला लगने के पीछे पौराणिक कथा है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि को ही भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर उनके चरणों में डाल दिया था इसलिए लक्खी मेला फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि तक चलती है. दरअसल जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो भीम के पौत्र घटोत्कच ने अपनी माता के चरणों को छूकर प्रण किया था कि वह युद्ध में उनका साथ देगा जो पक्ष हार रहा होगा. भगवान श्रीकृष्ण घटोत्कच के इस प्रण से विचलित हो गए क्योंकि युद्ध में कौरव ही हारने वाले थे ऐसे में घटोत्कच कौरवों की ओर शामिल हो जाते तो पांडवों का जीत पाना असंभव हो जाता.