पुरुषोत्तम पात्रा,गरियाबंद. “लल्लूराम डॉट काम” की पड़ताल में सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से हुई मौतों में एक चौकाने वाला मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि यहां जिनकी मौत किसी अन्य वजह से भी हुई है उनकों किडनी से मौत होने का दर्जा दे दिया गया है. वहीं गांव के ही सुमति बाई ने आरोप लगाया है कि किडनी से मरने वालों के परिजनों को सहायता राशि देने के लिए गांव के असामाजिक तत्व तय कर रहे है. फांसी व प्रसव पीड़ा से हुई मौत को भी किडनी की बीमारी से मौत की सूची में शामिल कर दिया गया है.

दरअसल किडनी से मृत ताराबाई की इकलौती बेटी सुमति को संसदीय सचिव द्वारा 20 हजार रूपए की सहायता राशि के लिए उत्तराधिकारी चुना गया था. लेकिन अब मुख्यमंत्री द्वारा 50 हजार रूपए की सहायता राशि के लिए उसकी चाची सत्यभामा  को उत्तराधिकारी चुन कर चेक दे दिया गया है. जिसकी शिकायत सुमति ने संसदीय सचिव गोवर्धन मांझी से की है. जांच के बाद कलेक्टर ने इस हितग्राही के राशि आहरण में रोक लगा दिया है.

बता दें कि मुख्यमंत्री ने रमन सिंह ने सुपेबेड़ा में किडनी बीमारी से हुई मृतक के परिजनों को 50-50 हजार सहायता देने के एलान किया था. उसके बाद से ही सूची में ऐसे लोगों का नाम लिखा जा रहा था जो इस राशि के हकदार थे ही नहीं. इस मामले की शिकायत सुमिता ने पहले प्रशासन से की थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी. अब उसने इसकी शिकायत संसदीय सचिव गोवर्धन मांझी से की है. जिसके बाद उस खाते के आहरण पर रोक लगा दिया गया है. मामले में नायाब तहसीलदार कृष्णमूर्ति दीवान ने बताया कि जिला से निर्देश मिलने के बाद आज जानकारी जुटा कर प्रतिवेदन कलेक्टर को भेजा गया है. उसके बाद खाते में रोक लगाने के निर्देश दिए गए है.

फांसी को बताया किडनी से हुई मौत

राशि से वंचित होने के बाद सुमति ने जब आग बबूला होकर कई गड़बड़ी होने का दावा कर रही थी. सूची की पड़ताल “लल्लूराम डॉट काम” ने किया तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये. 17 जनवरी 2012 को रविराम ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर लिया था. पुलिस ने मर्ग भी कायम किया है. उस वक़्त मानसिक परेशानी का कारण बताया था, लेकिन पंचायत ने जो सूची भेजी उसमें मौत का कारण किडनी दर्शाया गया है. बबिता बाई की मौत प्रशव पीड़ा से हुई है जिसे भी किडनी बीमारी से मौत बता दिया गया है. दावा किया जा रहा है कि सूची में जहर खुरानी, लम्बी बीमारी, प्राकृतिक मौत वालों के नाम को शामिल कर सरकार से मिलने वाले अनुदान की लिस्ट में शामिल कर दिया गया है.

उत्तराधिकारी के भी नामों में गड़बड़ी

मौत के कारणों को बदलने के अलावा उत्तराधिकारियों के नाम पर भी भारी गोलमाल किया गया है. सूची में 89 नम्बर की हितग्राही पुष्पा बाई की पति अभी भी किडनी की बीमारी से ग्रसित होकर जिंदगी से जूझ रहे है, लेकिन इसे समधी सुकरू राम के मौत पर उत्तराधिकारी दर्शाया गया है. 87 नम्बर में उल्लेखित मृतिका बूटकी बाई वर्षो से परितकय्यता का जीवन जी रही थी. दूसरे के सन्तान पुष्पा बाई को हितग्राही बताया गया है. ये दोनों हितग्राही गांव के उपसरपंच के सगे संबंधी है.  78 नम्बर पर मौजूद हितग्राही जोशना बाई को दादा ससुर खगेश्वर के मौत पर उत्तराधिकारी दर्शाया गया है. मृतक धनेस्वर माली के चार सन्तान में किसी एक के बजाय मंझोले बेटा के बेटे को उत्तराधिकार बताया गया है. इस तरह उत्तराधिकारियों के नाम में भी गड़बड़ी की गई है.

96 की संख्या का उठाया फायदा

मुख्यमंत्री की घोषणा के दौरान 96 का आंकड़ा निकल गया. जिसे भुनाने गांव के कुछ लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ा. ऐलान के बाद पंचायत ने 107 लोगों की सूची प्रशासन को थमा दिया. अफसरों की टीम ने सूची का सत्यापन कर 71 लोगों के नाम फाइनल कर दिये, लेकिन गांव के कुछ लोगों ने विपक्षी दलों को ढाल बनाकर प्रशासन पर हल्ला बोल दिया. सप्ताह भर तक विरोध प्रदर्शन चलता रहा. चुकी सीएम का यह स्वेच्छानुदान राशि था, इसे देने के लिये कोई दिशा निर्देश भी तय नहीं किया गया था. भारी दबाव के चलते सीएम के एलान के अनुरूप जिला प्रशासन को 96 नाम को सूची के आधार पर चेक वितरण करना पड़ा. मामले में अफसरों का कहना है कि विनय अग्रवाल सीईओ जनपद 71 लोगों के नाम का सत्यापन किया गया है, बाकी नाम कैसे आए इसका कोई अता-पता ही नहीं है.

पंचायत सचिव छबिराम नागेश ने बताया कि फांसी से जो मौत हुई है उसे किडनी की बीमारी थी. जो प्रसव के दरम्यान मृत हुई उसे भी किडनी की बीमारीं थी. सूची तैयार करते समय ऐसा ग्रामीणों का दावा किया था. ग्रामीणों का इतना दबाव था कि अपने मर्जी या रिकॉर्ड के मुताबिक हम सूची में हितग्राहियों का नाम नहीं दे पाए.

मामले में बीएमओ सुनील भारती ने बताया कि ग्रामीणों से पूछकर तैयार की गई सूची में अब तक 65 मृतक के नाम हमारे पास है जिनकी मौत किडनी की बीमारी से हुई है. जनसंख्या के अनुपात में होने वाले सामान्य मौत को भी किडनी पीड़ित बताकर आंकड़ा बढ़ा दिया गया है, जो कि बहुत गलत है. अब देखना यह होगा कि क्या इस मामले में प्रशासन कोई कार्रवाई करती है या नहीं. या फिर यूं ही फर्जी आंकड़ा पेश कर राशि का गबन होता रहेगा.