पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। किडनी की बीमारी से जूझ रहे गरियाबंद के सुपेबेड़ावासियों को अब डायलिसिस के लिए अब भटकना नहीं पड़ेगा. मरीजों की घर पर ही डायलिसिस होगी. इसके लिए प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग नई तकनीक का सहारा ले रहा है.

गरियाबंद के सुपेबेड़ा के रहवासी बीते 6 साल से किडनी की तकलीफ से जूझ रहे हैं. इससे तकरीबन 80 लोगों की मौत और दर्जनों लोग अभी भी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. ग्रामीणों को राहत देने के लिए देवभोग में 3 साल पहले लगाई गई डायलिसिस मशीन तो अब तक चालू नहीं हो पाई, लेकिन अब सरकार ने मरीजों को पेरिटोनियल डायलसिस की सुविधा उपलब्ध करवाकर कुछ राहत देने का काम जरूर किया है.

पेरिटोनियल डायलीसिस किडनी की बीमारी से जूझ रहे लोगों के उपचार की नई तकनीक है. इसके जरिए मरीज स्वयं या किसी सहयोगी की मदद से घर पर ही अपना डायलिसिस कर सकता है. फिलहाल, सुपेबेड़ा के दो मरीज इसका लाभ ले रहे है. 52 वर्षीय किडनी पीड़ित शिक्षक तुकाराम और 60 वर्षीय ललिता सोनवानी का इसी तकनीक के जरिए डायलिसिस किया जा रहा है.

पेरिटोनियल डायलिसिस की बदौलत शिक्षक तुकाराम पहले से बेहतर है. इस काम मे उनका बेटा राहुल उनकी मदद करता है. इसी प्रकार राहत ललिता भी महसूस कर रही हैं, जिन्हें पेरिटोनियल डायलिसिस करने का जिम्मा उसकी 5वीं पास बेटी पुष्पा निभा रही है.

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सुपेबेड़ा के किडनी मरीजों को पेरिटोनियल डायलीसिस उपलब्ध कराने का खर्च राज्य सरकार उठा रही है. देवभोग में लगी डायलिसिस मशीन के चालू होने की उम्मीद छोड़ चुके सुपेबेड़ावासियों को अब इस नई तकनीक से ही बेहतर जिंदगी की उम्मीद जगी है. जरूरत केवल तकनीक को और भी प्रभावित लोगों तक पहुंचाने की है.

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