रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में विदेशियों के ट्वीट्स के ज़वाब में किए गए भारतीय हस्तियों के ट्वीट्स की जाँच कराने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। साय ने कहा कि इस फैसले से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के दिमाग़ी दीवालियापन और ‘एक लाचार मुख्यमंत्री के बेबस राजनीतिक चरित्र’ का परिचय मिलता है। भारत के अंदरूनी मामलों में किसी भी विदेशी की राय को अनधिकार चेष्टा माना जाना चाहिए और इस तरह की अलगाववादी और दुराग्रह-प्रेरित साजिशों को मुँहतोड़ ज़वाब देना देश के हर उस नागरिक का कर्त्तव्य है, जिन्हें इस देश की मिट्टी से लगाव है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय ने कहा कि कांग्रेस तो वैचारिक दरिद्रता और दुविधाग्रस्त व बौने नेतृत्व के चलते आज वामपंथियों के हाथों ख़िलौना बनी नज़र आ रही है और कांग्रेस पोषित विपक्षी दल सत्तालोलुपता के चलते रिरियाते-मिमियाते वही करने के लिए विवश दिख रहे हैं, जो कांग्रेस उनसे करा रही है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की तरस खाने लायक बुद्धिहीनता की यह पराकाष्ठा है कि उन्हें भारत रत्न से अलंकृत हमारी महान हस्तियों तक के बारे में यह आशंका है कि किसी दबाव में आकर उन्होंने रिहाना, मिया ख़लीफ़ा और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट्स का मुखर विरोध किया है। जब विचारशील नेतृत्व आइसोलेट हो जाए तब राजनीतिक दलों का अस्तित्व दाँव पर लग जाता है, यह कांग्रेस की दशा बता रही है, लेकिन कांग्रेस की राजनीतिक दुर्गति से भारत का शेष विपक्ष कोई सबक क्यों नहीं लेना चाहता, समझ से परे है।
कांग्रेस और विपक्षी नेताओं को क्या स्वर कोकिला लता मंगेशकर, क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर और फ़िल्म अभिनेता अक्षय कुमार अपने जैसे विचारहीन प्रतीत होते हैं जो किसी दबाव में आकर अपने विचार व्यक्त करेंगे? क्या देश के किसी भी ज्वलंत प्रश्न पर इन हस्तियों की राय पर कोई पहरा बिठाया जाना उचित है? जिन सचिन तेंदुलकर पर आज सवाल उठाए जा रहे हैं, उनको भारत रत्न कांग्रेस ने ही दिया था और कांग्रेस ने ही उन्हें राज्यसभा में भी भेजा था। साय ने कहा कि सत्ता लोलुपता के दलदल में गले तक धँसे हुए लोग ही दबाव में आकर उचित-अनुचित का ख़्याल किए बग़ैर आचरण करते हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी का झंडा हाथ में लिए शोर मचाने वालों का राजनीतिक चरित्र ही यही है कि सत्ता-पिपासा में वे अपने ही देश की नामचीन हस्तियों की अभिव्यक्ति पर हमला कर निर्लज्जता का प्रदर्शन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की सरकार अपनी-अपनी विधाओं में देश-विदेश में मिसाल बन चुकीं इन भारतीय हस्तियों पर दबाव की गुंजाइश खोजने के बजाय अपने ऊपर कांग्रेस और एनसीपी के दबाव को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करे और यह भी माने कि सत्ता की ललक में शिवसेना नेताओं को अब गर्त में जाने तक से परहेज नहीं रह गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सत्ता और दबंगई के ज़ोर पर कांग्रेस, एनसीपी व शिवसेना की तिकड़ी इन हस्तियों पर अपना अनुचित दबाव बनाने की फ़िराक़ में है। साय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंध-विरोध के इकलौते एजेंडे के चलते मानसिक असंतुलन की मनोदशा भोग रहे विपक्षी दल और उनकी राज्य सरकारों के ऐसे निकृष्ट राजनीतिक आचरण से यह आशंका गहरा रही है कि सत्ता की लालसा में विपक्ष देश की संप्रभुता और एकजुटता से खिलवाड़ करने वाली बाहरी ताक़तों का मोहरा तक बनने को तैयार हैं।