रायपुर। संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन छत्तीसगढ़ के किसान 14 मार्च को दिल्ली में आयोजित किसान मजदूर महापंचायत में शामिल होंगे. इसके लिए वे 13 मार्च की सुबह दुर्ग-उधमपुर ट्रेन से रवाना होंगे. इसकी जानकारी भारतीय किसान यूनियन छत्तीसगढ़ के महासचिव तेजराम विद्रोही ने दी.
तेजराम विद्रोही ने बताया कि संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली के देशव्यापी आह्वान पर 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में एमएसपी की कानूनी गारंटी देने और चार श्रम संहिता को वापस लेने के लिए आयोजित होने वाली किसान महापंचायत में छत्तीसगढ़ से भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में भाग लेंगे. सभी किसानों को सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मिल सके इसके लिए जारी आंदोलन पर केंद्र सरकार की ओर से फैलाए जा रहे भ्रम पर किसानों ने कहा कि भारत सरकार केवल 23 फसलों के लिए एमएसपी प्रदान करती है और इस मूल्य पर खरीद की गारंटी नहीं करती है. गेहूं और धान के लिए पंजाब, हरियाणा, मप्र और उप्र में कुछ मंडियां मौजूद हैं. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में धान की कुछ सरकारी खरीदी होती.
उन्होंने कहा कि भारतीय कपास प्राधिकरण की ओर से विभिन्न प्रकार से कपास की खरीद की जाती है. सरकारी तौल केंद्रों के माध्यम से मिलों में बिक्री से गन्ने की कीमत का आश्वस्त की जाती है. नाफेड कुछ दालें खरीदता है. खरीद एक समान नहीं है, उदाहरण के लिए, सरकार अपने गेहूं का 70% केवल पंजाब और मप्र से खरीदती है, जो पंजाब के उत्पादन का 70% और मप्र के उत्पादन का 35% है, लेकिन उप्र के उत्पादन का केवल 15% सरकार की ओर से खरीदा जाता है.
तेजराम विद्रोही ने बताया कि इसका नतीजा यह हुआ कि धान का एमएसपी जो 2023 में 2183 रुपये प्रति क्विंटल था, बिहार और पूर्वी उप्र में व्यापारियों की ओर से 1200 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत तक खरीदा गया, क्योंकि वहां कोई सरकारी खरीद नहीं है. इसी तरह, 2023-24 के लिए गेहूं का एमएसपी 2125 रुपये था और कई क्षेत्रों में 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदा गया था. इसके अलावा 2 साल पहले मक्के का एमएसपी 1900 रुपये प्रति क्विंटल था और 1100 रुपये प्रति क्विंटल पर बिका. कीमत में यह गिरावट इसलिए आती है क्योंकि खरीद की कोई गारंटी नहीं है. एमएसपी बाजार में मौलिक दर निर्धारित कर देता है और कॉर्पोरेट व्यापारिक कंपनियों से जुड़े बिचौलिए बाजार पर राज करते हैं, क्योंकि किसानों के पास रखने और भंडारण करने की क्षमता नहीं होती है, जिससे उन्हें औने-पौने दाम पर अपनी उपज बिक्री करनी पड़ती है.
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