रायपुर। देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आज स्कूल-कॉलेज के साथ विभिन्न शासकीय संस्थाओं में हिन्दी से जुड़े अनेक आयोजन किए जा रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस देश में अंग्रेजों की गुलामी के दिनों से लेकर मुगल शासन के दौरान देश के कामकाज की मुख्यभाषा उर्दू के स्थान पर आजादी के बाद कैसे हिन्दी ने अपना स्थान बनाया.

देश को आजादी मिलने के साथ हिन्दी और अंग्रेजी दोनों को ही नए राष्ट्र की भाषा चुना गया था, लेकिन 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी को राजभाषा के तौर पर स्वीकार करते हुए इस दिन को हिन्दी दिवस मनाने का फैसला लिया. हालांकि, इस फैसले पर जाकर 1953 में अमल हो पाया.

भारत की करीबन 40 प्रतिशत आबादी रोजाना व्यवहार में हिन्दी भाषा का प्रयोग करती है. देश की 22 अनुच्छेद भाषाओं में से एक हिन्दी का उद्भव पर्सियन शब्द ‘हिन्द’ से हुआ है, जिसका इस्तेमाल ‘इंडस नदी’ के बाशिंदों के लिए किया जाता था. आज हिन्दी अंग्रेजी, स्पेनिश और मेंड्रिन (चीनी) भाषा के बाद दुनिया की चौथी ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है.

हिन्दी को राजभाषा के दर्जा दिलाने में व्यौहार राजेन्द्र सिंहा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेकर, मैथली शरण गुप्त और सेठ गोविंद दास की अहम भूमिका है. 14 सितंबर को हिन्दी भाषाविद् व्यौहार राजेन्द्र सिंहा के 50वें जन्मदिवस 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजभाषा के तौर पर मान्यता प्रदान की गई.

संविधान सभा के हिन्दी को राजभाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची सेशन में 1925 को स्वतंत्र भारत की भाषा के तौर पर हिन्दुस्तानी को बनाने का निर्णय लिया था. हिन्दुस्तानी हिन्दी के साथ उर्दू का मिलाजुला स्वरूप है.