संतानहीनता के लिए महर्षि पाराषर ने अनेक कारणों का उल्लेख किया है, जिसमें प्रमुख कारण जातक का किसी ना किसी प्रकार से शाप से ग्रस्त होना भी बताया है. यदि जन्मांग में पंचमस्थान का स्वामी शत्रुराशि का हो, छठवे, आठवे या बारहवें भाव में हो या राहु से आक्रांत हो या मंगल की पूर्ण दृष्टि हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है. यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य हो तो पितरों का शाप संतान में बाधा देता है. वहीं यदि चंद्रमा प्रतिबंधक ग्रह हो तो माता या किसी स्त्री को दुख पहुंचाने के कारण संतानबाधक योग बनता है.
मंगल से संतान बाधक हो तो भाई बंधुओं के शाप से संतानसुख में कमी होती है. यदि गुरू संतानहीनता में कारक ग्रह बनता हो तो कुलगुरू के शाप के कारण संतानबाधा होती है. यदि शनि के कारण संतान बाधा हो तो पितरों को दुखी करने के कारण संतान में बाधा होती है और राहु के कारण संतान प्राप्ति के मार्ग में बाधा हो तो सर्पदोष के कारण संतानसुख बाधित होता है.
इसी प्रकार ग्रहों की युक्ति या ग्रह दषाओं के कारण भी संतान में बाधा या हीनता का कारण बनता हो तो उचित ज्योतिषीय निदान द्वारा संतानहीनता के दुख को दूर किया जा सकता है. उक्त ग्रह दोष निवारण उपाय के साथ पयोव्रत करना लाभकारी होता है. पयोव्रत का व्रत फाल्गुनमास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से त्रयोदषी तक किया जाता है. इस विधि विधान से किया गया व्रत संतानहीनता का दोष दूर कर संतान सुख प्रदान करता है.