मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित भूमरा शिव मंदिर (जिसे भुमरा, भरकुलेश्वर या भुब्हारा भी कहा जाता है) भारतीय पुरातत्व और हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह पांचवीं शताब्दी के अंत या छठी शताब्दी की शुरुआत का गुप्त युगीन पत्थर का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। जंगलों से घिरे ऊंचे पठार पर स्थित यह मंदिर गुप्त काल की उत्कृष्ट कला और शिल्पकला का प्रतीक माना जाता है।
मंदिर उंचहरा शहर से करीब 19 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और सतना शहर से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में खाम्हा एवं मोहना पहाड़ियों के पास है। लगभग 1,500 फुट की ऊंचाई पर बसा यह स्थल आज भी अपनी प्राचीन सुंदरता बिखेरता है, हालांकि समय के साथ इसका बड़ा हिस्सा खंडहर में बदल गया है।

भूमरा शिव मंदिर की संरचना चौकोर योजना पर आधारित है, जिसमें गर्भगृह, संलग्न परिक्रमा पथ और स्तंभयुक्त मंडप शामिल हैं। गर्भगृह के दरवाजे पर गंगा और यमुना देवियों की जटिल नक्काशी है। सबसे खास है यहां का एकमुख शिवलिंग (मुखलिंग), जिसमें शिवजी का चेहरा उकेरा गया है – यह गुप्त कला का एक दुर्लभ और अध्ययन का प्रमुख नमूना है।मंदिर की दीवारों और अवशेषों में महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा), गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, कार्तिकेय, कुबेर, यम और अन्य देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। विशेष रूप से, यहां मिली गणेश जी की मूर्ति पांचवीं शताब्दी की सबसे प्राचीन ज्ञात प्रतिमाओं में से एक है, जिसमें गणेश शक्ति के साथ चित्रित हैं।
मंदिर के कई हिस्से और मूर्तियां अब संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। कोलकाता और इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में प्रमुख अवशेष रखे गए हैं, जबकि 1920 के दशक में बोस्टन म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्स ने प्रसिद्ध गणेश-शक्ति वाली मूर्ति प्राप्त की थी।इतिहासकारों के अनुसार, 1873-74 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थल की खोज की और शिलालेखों का अध्ययन किया। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1919-20 में खुदाई कर मंदिर के खंडहरों को उजागर किया।
भूमरा शिव मंदिर का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह गुप्त युग में शैव, वैष्णव और शाक्त परंपराओं के सह-अस्तित्व को दर्शाता है। गणेश पूजा के प्रारंभिक चित्रण के कारण यह हिंदू धर्म के विकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण है। पुरातत्व विशेषज्ञ इसे उत्तर भारतीय नागर शैली के प्रारंभिक मंदिरों में गिनते हैं।आज यह स्थल पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो गुप्त काल की कारीगरी की झलक पाना चाहते हैं।
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