वाराणसी. भगवान भास्कर की उपासना के महापर्व ने सात समंदर पार की दूरियों को भी मिटा दिया. कोई पहली बार अर्घ्य देने काशी पहुंचा तो कोई छठ की आस्था को नजदीक से समझने और देखने. इसी तरह किसी ने पहली बार छठ पूजा का संकल्प लेकर पूजन शुरू किया. शहर से लेकर गांव तक छठ का उल्लास देखते ही बन रहा था.

अस्ताचल गामी सूर्यदेव को अर्घ्य देने और पूजा में शामिल होने के लिए विदेशों से भी लोग पहुंचे. गोलाघाट निवासी प्रखर त्रिपाठी कनाडा में एक निजी कंपनी में इंजीनियर हैं. अपने मामा संतोष द्विवेदी के यहां छठ पूजा में शामिल होने पहुंचे थे. वह शाम को सपरिवार रामनगर में गंगा किनारे घाट पर पहुंचे और विधि-विधान से भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया. प्रखर ने कहा कि भारत की संस्कृति ही है जो सात समंदर पर होने के बाद भी उनको अपनी जड़ों से जोड़ती है. इस आध्यात्मिक माहौल में जो ऊर्जा और यादें मिली हैं वह अविस्मरणीय रहेंगी.

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कंदवा निवासी यज्ञ गुप्ता ने बताया कि उनका जर्मनी निवासी दोस्त कोर्स सिर्फ छठ की पूजा देखने जर्मनी से भारत आए हैं. कोर्स जर्मनी में लाॅ की पढ़ाई कर रहे हैं. कोर्स काफी समय से छठ में शामिल होने के लिए उत्सुक थे. अडानी पावर में काम करने वाले यज्ञ ने बताया कि काम के दौरान उनकी कोर्स से दोस्ती हुई थी. वह 17 नवंबर को वाराणसी पहुंचे. कोर्स के मन में छठ के होने वाले हर अनुष्ठान को लेकर काफी उत्सुकता है. कोर्स का कहना है कि भारत की संस्कृति अनोखी है. छठ का यह पर्व हमें प्रकृति के बेहद करीब ले जाता है.