पुरुषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। जिले में सर्वाधिक देवभोग तहसील के 50 कोटवारों ने 219 लोगों को 220 एकड़ सेवा भूमि बेच दिया. सरकारी निर्देश के बाद अब एसडीएम लिस्टिंग कर नामांतरण शून्य करने की तैयारी कर रहे. रजिस्ट्री शून्य करने सिविल वाद भी प्रशासन दायर करेगी.

दरअसल, समय-समय पर कोटवारी जमीन खरीदी बिक्री का मामला उठते रहता है. 2016 से एसडीएम न्यायालय में मामला भी चल रहा है, पर अब इस मामले मे प्रशासन पहले की अपेक्षा ज्यादा सख्त नजर आ रहा है. हाल ही में जारी एक सरकारी निर्देश के बाद अब एसडीएम द्वारा सेवा भूमि बेचने वाले कोटवार व खरीददारों की सूची तैयार किया गया है. लिस्ट के मुताबिक, देवभोग तहसील के 50 कोटवारों ने कुल 219 लोगों को 220 एकड़ जमीन बेच दिया है. जबकि जिले के मैनपुर, गरियाबन्द व छुरा में 20 एकड़ से भी कम खरीद बिक्री का मामला सामने आया है. मामले में एसडीएम अनुपम आशीष टोप्पो ने कहा कि लिस्टिंग कर कलेक्टर को अवगत कराया जाएगा. निर्देश के बाद पहले नामांतरण शून्य किया जाएगा. निर्देश लेकर रजिस्ट्री शून्य करने सिविल न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाएगा.

कोर्ट के आदेश का नाजायज फायदा, दो साल में 200 रजिस्ट्री करवाया

वर्ष 2003 में हाईकोर्ट ने दायर एक याचिका के आधार पर सेवाभूमि को भूमि स्वामी का हक देने कहा था, पर विक्रय के लिए किसी भी किस्म के कोई अधिकार नहीं दिए गए थे. कोर्ट के इसी आदेश का फायदा उठाकर तत्कालीन तहसीलदार ने 2003 से 2006 के बीच सेवा भूमि की रजिस्ट्री करवा दी. 200 से ज्यादा रजिस्ट्रियां इसी अवधि में हुए, जबकि राजस्व सहिंता की धारा 158 में ऐसे जमीन के भूमि स्वामी को कम से कम 10 वर्ष की अवधि के बाद ही कलेक्टर के अनुमति से विक्रय करने का प्रावधान किया गया. शासन के 10 मार्च 2014 को जारी आदेश में ऐसी भूमि धारकों के अभिलेख में अहस्तांतरणीय दर्ज करने को भी कहा था.

झराबहाल डोहेल की जमीन अब करोड़ों की

नेशनल हाइवे से लगे झराबहाल में कोटवार वृन्दावती को मिली सेवा भूमि में 15 एकड़ को 23 लोगों ने खरीदा है. इसी तरह रोड से लगी डोहेल की 6 एकड़ को 8 लोगों ने ख़रीदी किया है. इसकी बाजार भाव वर्तमान में न्यूनतम 1 करोड़ रुपये प्रति एकड़ है. इन जगहों पर कई व्यावसायिक परिसर व कॉम्लेक्स का निर्माण भी हो चुका है. भीतरी गांव में सड़क किनारे लगे निष्टिगुड़ा के 27 एकड़ को 22 लोगों ने,रोहनागुड़ा में 14 एकड़ को 12 लोगों ने खरीदा है. बिक्री हुए 220 एकड़ सेवा भूमि में 160 एकड़ कृषि कार्य मे इस्तेमाल हो रहा,जबकि शेष भूमि में आवास, कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया गया है.

सेवादारों के गुजारा के लिए दिए जाते थे सेवा भूमि

1950 से पहले मालगुजारों ने गांव की सेवा में लगे कोटवार, झांखर, पटेल, पुजारी अन्य सेवादारों को जीवकोपार्जन के लिए भूमि दिखा देते थे, कोटवारों को सर्वाधिक दिया जाता था. इसलिए पुराने कोटवारों के नाम अधिकतम 30 एकड़ न्यूनतम 15 एकड़ भी सेवा भूमि दर्ज है. मालगुजारी प्रथा खत्म होते ही, बाद में नियुक्त कोटवारों को 10 एकड़ सेवा भूमि निर्धारित किया गया. पहले कोटवार पारम्परिक होते थे. पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार से बनते थे. समय बदलने के साथ दीगर परिवार से भी कोटवार बनने लगे. नियमतः जो भी कोटवार होगा उसे ही इस सेवा भूमि का लाभ लेता.

खड़ी इमारतों पर अब तक कोई विचार नहीं

फिलहाल जारी आदेश के मुताबिक अभिलेख में सुधार कर फिर से सेवा भूमि दर्ज करना है, निर्धारित कालम में अहस्तारनीय लिखा जाना है, रजिस्ट्री पेपर व अन्य दातावेज जब्त किए जाने हैं, रजिस्ट्री शून्य करने न्यायालय में परिवाद दायर होना है. लेकिन विक्रय करने वाले कोटवार ,रजिस्ट्री करने वाले अफसर व खड़ी इमारतों के विरुद्ध कैसी कार्यवाही होनी है यह तय नहीं है.