रायपुर। केमिकल रंगों का आंतरिक प्रभाव किस तरह से होली में पड़ता इसे आप सभी जानते ही है. इसलिए इस बार आपके लिए कुछ खास तरीके से रंगों को तैयार किया है छत्तीसगढ़ की महिलाओं. स्व-सहायता समूह की महिलओं ने प्राकृतिक तरीके से होली का ऐसा रंग तैयार किया है, जो हर लिहाज से बढ़िया है. समूल की महिलाओं ने रंगों का हर्बल प्रोडेक्ट तैयार किया है. महिलाओं ने अपने उत्पादों की प्रदर्शनी रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय कृषि मेले में लगाई है. जहाँ बड़ी संख्या में लोग होली के लिए हर्बल रंग खरीदने पहुँच रहे हैं.
तिल्दा की आस्था स्व-सहायता समूह की इन महिलाओं ने लाल भाजी, चुकंदर, हल्दी, गेंदा फूल, बेसन जैसे चीजों के साथ केमिकल मुक्त होली के रंग तैयार किए हैं. इसमें हरा, नीला, नारंगी, लाल जैसे कई रंग और गुलाल शामिल है. समूल की मीरा कनौज्जे ने बताया कि होली के त्यौहार को ध्यान में रखते हुए उन्होंने हर्बल गुलाल बनाने की शुरूआत हमने की है. हर्बल गुलाल में हरे रंग के लिए पालक, गेंदा पौधे की पत्तीयां, पीले रंग के लिए गेंदा फूल, हल्दी और बेसन और नारंगी रंग के लिए लाल भाजी और चुकंदर का उपयोग किया गया है. उन्होंने बताया कि ये रंग केमिकल फ्री होने के कारण त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते.
कन्नौजे बताती हैं कि उनकी तरह लगभग 3 हजार महिलाएं समूह से जुड़ी हैं. समूह में काम करने से पहले वह खेती किसानी का काम करती थीं. समूह की कई महिलाएं पढ़ी लिखी न होने के कारण भी कोई दूसरा काम नहीं कर पाती थीं. पंचायत के माध्यम से बिहान योजन के तहत महिलाओं को विभिन्न उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिससे अब महिलाएं सक्षम हो गई है. समूह की महिलाओं ने गोबर के दीये, गमला बनाने के बाद अब हर्बल गुलाल बनाना भी शुरू कर दिया है. उन्होंने बताया कि उनके बनाए दीये नागपुर, दिल्ली, राजस्थान, रायपुर तक में बेचे गए, जिससे उन्हें लगभग 5 लाख रूपए की आमदनी हुई. अब महिलाएं हर्बल दंत मंजन सहित कई जैविक उत्पाद बना रही हैं। इससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है और घर परिवार चलाना आसान हो गया है.