उज्जैन। बाबा महाकाल की नगरी नाम से जाना जाता उज्जैन भारत का एक ऐसा प्राचीन शहर है जिसका धार्मिक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक महत्व अनमोल है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के कारण यह नगरी हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। लेकिन उज्जैन सिर्फ भगवान शिव के कारण ही नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ जुड़े उनके गहरे संबंधों के लिए भी प्रसिद्ध है। आज हम उज्जैन और श्रीकृष्ण के संबंधों की आध्यात्मिक गाथा को समझेंगे और जानेंगे कि कैसे यह नगरी श्रीकृष्ण के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

‘सांदीपनि आश्रम’ जहां श्रीकृष्ण ने पाई शिक्षा


उज्जैन के सांदीपनि आश्रम का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बेहद खास है। इस आश्रम में ही भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में शिक्षा प्राप्त की थी। महाभारत और पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ यहां गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की थी। यही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने न केवल वेदों का ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल की।

सांदीपनि आश्रम में आज भी श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा की प्रतिमाएं लगी हैं, जो श्रद्धालुओं को उस समय की याद दिलाती हैं जब ये तीनों मित्र एक साथ अध्ययन करते थे। इस आश्रम में आने वाले भक्त श्रीकृष्ण की विद्या, उनके कर्तव्यों और जीवन के आदर्शों को आत्मसात करते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में है श्रीकृष्ण की भक्ति और आस्था का केंद्र


उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और इसकी महिमा का वर्णन पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तब उन्होंने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए और भगवान शिव की उपासना की। श्रीकृष्ण की भक्ति और आस्था ने उन्हें न केवल एक महान योद्धा बनाया, बल्कि एक आध्यात्मिक नेता के रूप में भी स्थापित किया।

महाकालेश्वर मंदिर में आज भी भगवान शिव के साथ-साथ श्रीकृष्ण की भक्ति का माहौल देखने को मिलता है। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान महाकाल की पूजा करते हुए श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित होते हैं, और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को धर्म और कर्तव्य की राह पर आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

उज्जैन में जन्माष्टमी की विशेषता


उज्जैन में जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। सांदीपनि आश्रम और महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु उपवास रखते हैं और आधी रात को श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं। इस अवसर पर झांकियां निकाली जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं का जीवंत चित्रण किया जाता है।

महाकालेश्वर मंदिर और सांदीपनि आश्रम में विशेष भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो भक्तों को एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। यहां का वातावरण भक्ति और श्रद्धा से परिपूर्ण होता है, जो हर व्यक्ति को श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं से जोड़ता है।

श्रीकृष्ण और शिव की नगरी


उज्जैन को श्रीकृष्ण और शिव दोनों की नगरी कहा जा सकता है। यहां श्रीकृष्ण की शिक्षा का स्थान होने के साथ-साथ भगवान शिव के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का भी निवास है। यह नगरी हमें श्रीकृष्ण और शिव के अद्वितीय संबंधों की याद दिलाती है, जो धर्म, शक्ति, और ज्ञान का प्रतीक हैं।

श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ा हर पहलू हमें उज्जैन की गलियों, मंदिरों, और आश्रमों में दिखाई देता है। यह नगरी हमें यह सिखाती है कि धर्म और आस्था के पथ पर चलकर हम जीवन के हर संघर्ष का सामना कर सकते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

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