जन्माष्टमी (Janmashtami) पर भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा की जाती है. जन्माष्टमी पर खीरे की अहम भूमिका है. इसके बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है. मान्यताओं के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) के दिन खीरा चढ़ाने का विशेष महत्व है. श्रीकृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. जिस वजह से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात में की जाती है. लड्डू गोपाल के जन्म के बाद उन्हें स्नान कराया जाता है, बाल गोपाल को नए वस्त्र पहना कर तैयार किया जाता है.
खीरा काटने की नाल छेदन प्रक्रिया
जन्माष्टमी (Janmashtami) के दिन खीरे को काटकर उसके तने से अलग किया जाता है. डंठल वाला खीरा इस पूजा में रखना बेहद जरुरी होती है. इस खीरे को गर्भनाल की तरह माना जाता है. दरअसल इस दिन खीरे को श्री कृष्ण के माता देवकी से अलग होने का प्रतीक के रूप में देखा जाता है. जिस तरह से माता के गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चे को नाल से अलग कर दिया जाता है उसी तरह डंठल वाले खीरे को ठंडल से अलग कर दिया जाता है. Read More – Anant Ambani और Radhika Merchant की शादी की रस्में हुईं शुरू, मामेरु रस्म में दिखा पूरा परिवार ...
इस प्रक्रिया को नाल छेदन कहा जाता है.यही कारण है कि कई स्थानों पर जन्माष्टमी (Janmashtami) के दिन खीरा काटने की प्रक्रिया को नल छेदन के नाम से भी जाना जाता है. जन्म के समय जिस तरह बच्चों को गर्भनाल काट कर गर्भाशय से अलग किया जाता है, ठीक उसी प्रकार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर खीरे की डंठल को काटकर लड्डू गोपाल जन्म कराने की परंपरा चली आ रही है. Read More – Anant Ambani और Radhika Merchant की शादी की रस्में हुईं शुरू, मामेरु रस्म में दिखा पूरा परिवार ...
इस तरह की जाती है पूजा विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लड्डू गोपाल का जन्म खीरे से होता है. भक्त लड्डू गोपाल के पास खीरे को रखते हैं और मध्य रात्रि 12 बजे खीरे को डंठल से अलग कर देते हैं. सिक्के से डंठल और खीरे से अलग किया जाता है. पूजा के बाद आप कटा हुआ खीरा गर्भवती महिलाओं को दें सकते हैं. इसे लोगों में प्रसाद के रुप में बांटा जा सकता है. लड्डू गोपाल को पंजीरी ,पंचामृत और खीर के अलावा श्री कृष्ण को खीरे का भोग भी जरूर लगाना चाहिए.
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