Kuldevta Worship Traditions: हमने अक्सर देखा है कि गणेशोत्सव, दुर्गा पूजा या अन्य देवी–देवताओं की मूर्तियों को धूमधाम से शोभायात्रा में ले जाकर सार्वजनिक रूप से विसर्जित किया जाता है.

लेकिन कुलदेवता की पूजा कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, उनके साथ यह परंपरा नहीं निभाई जाती. न तो भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है और न ही सार्वजनिक विसर्जन होता है. आखिर इसके पीछे कारण क्या है?

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Kuldevta Worship Traditions

Kuldevta Worship Traditions: क्यों नहीं निकाली जाती कुलदेवता की शोभायात्रा? क्या है इसके पीछे की मान्यता

कुलदेवता होते हैं घर के रक्षक (Kuldevta Worship Traditions)

मान्यता है कि कुलदेवता या कुलदेवी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे वंश की रक्षा करते हैं. उन्हें कुल का स्थायी प्रहरी माना जाता है. ऐसे में उनका विसर्जन करना या उन्हें विदाई देना अशुभ और अनिष्टकारी माना जाता है. विसर्जन का अर्थ होता है किसी देवता की अस्थायी विदाई, जबकि कुलदेवता की उपस्थिति तो परिवार की स्थायित्व और सुरक्षा की प्रतीक होती है.

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शोभायात्रा क्यों नहीं? (Kuldevta Worship Traditions)

कुलदेवता की मूर्ति या प्रतीक को घर से बाहर ले जाना, सार्वजनिक प्रदर्शन के रूप में घुमाना परंपरा के अनुसार ठीक नहीं माना जाता. कुलदेवता का पूजन सीमित होता है—घर के मंदिर, कुलस्थान या किसी विशेष स्थान पर. उन्हें बाहर ले जाने से उनकी गोपनीय शक्ति या कुल की ऊर्जा क्षीण हो सकती है—ऐसी आस्था है. इसीलिए न तो उनके डोले निकाले जाते हैं, न ही बाजा–गाजा के साथ प्रदर्शन होता है.

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गोपनीयता ही है शक्ति (Kuldevta Worship Traditions)

कुलदेवता की सबसे बड़ी विशेषता है—उनका गोपनीय रहना. कौन-से कुल का कौन-सा देवता है, यह भी अक्सर केवल परिवार या वंश के भीतर ही ज्ञात रहता है. यह गोपनीयता केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संरक्षण है. कई विद्वानों के अनुसार, कुलदेवता की शक्ति उतनी ही प्रभावी रहती है, जितनी वह गोपनीय रहती है.

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