भाजपा-कांग्रेस में पथराव हुआ तो उसे तुल देकर मामले को आगजनी तक पहुंचा देंगे

 

क समाचार पत्र में ‘आवश्यकता है’… यह दो शब्द बड़े-बड़े अक्षरों में देखकर बांछे खिल गई. इसे पढ़कर एकबारगी लगा कि फिर से रिज्यूम अपडेट करने का वक्त आ गया है. मगर नीचे लिखी लाइन पढ़ते ही दिमाग झन्ना गया. बड़े-बड़े अक्षरों में आवश्यकता है… लिखने के बाद सामान्य अक्षरों में लिखा था ‘पागल पत्रकारों की’… शब्द ‘पागल पत्रकारों की…’ लिखे जाने के बाद उस पर एक स्टार भी दर्ज था. मतलब साफ़ था कि इस अखबार में पागल पत्रकारों के लिए भी कई हिडन(गुप्त) शर्तें और नियम होगी. इसे पढ़ने के बाद मन में कई प्रकार की दुविधाएं घूमने लगी. मन बनाया कि इस अखबार के दफ्तर जाकर ही पता लगाऊं कि आखिर इस नए अखबार को पागल पत्रकारों की जरूरत क्यों है.

बताये पते पर पहुंचा तो दफ्तर तो बिलकुल कांजी हाउस जैसा लग रहा था. मन में डर था कि अन्दर जाऊं या नहीं. आ ही गया था तो दफ्तर के अन्दर घुसा… अन्दर घुसने पर चार पागल पत्रकार पहले से खड़े थे. मतलब साफ था कि 4 पागल पत्रकारों की भर्ती हो चुकी थी. मैं भी पांचवां पागल पत्रकार बनने गया था. कांजी हाउस जैसा दिखने वाले दफ्तर के किसी कसाई की तरह दिखने वाला मालिक से मुखातिब हुआ. मैंने पूछा मेरी सैलरी क्या होगी…? ये भी बताईये कि बतौर पागल पत्रकार मुझे क्या-क्या करने होंगे…? अखबार के मालिक ने बताया कि देखिए! हमारा अखबार को किसी पत्रकारिता-वत्रकारिता का अफीम नहीं चढ़ाना है. और ना ही आप लोगों को पत्रकार वाला फजीहत का चोला पहनाना है.

हमारे अखबार में पत्रकार मतलब बाउंसर की तरह होंगे. कुल मिलाकर हमें मीडिया बाउंसर चाहिए. अखबार मालिक ने आगे अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मीडिया का मतलब आजकल गुंडागर्दी का अड्डा हो चुका है. मैं स्वयं बीते 30 सालों से मीडिया में काम किया हूं . उनसे सभी अनुभव के बाद यह अखबार शुरू करने का मन बनाया हूं. आने वाले कुछ सालों के भीतर ही TV चैनल लॉन्च करने का लक्ष्य है. मैंने पूछा- मगर मीडिया बाउंसरों का काम क्या होगा कृपया यह तो बताईये… अखबार मालिक ने कहा- हमारे मीडिया बाउंसर खबर के लिए कुत्ते की तरह भटकेंगे नहीं. बल्कि चलते-फिरते खबर जनरेट करेंगे. रात के अंधेरे में कहीं आग लगा देंगे. और कभी जब अखबार का वाहवाही लूटने का मन करे तो हमारे अखबार के एक बाउंसर ने आग लगाई तो दूसरा उसे तत्परता से बुझा देगा. फिर लिखा जायेगा कि अमुक अखबार के पत्रकारों ने बुझाया जलता घर, पांच लोगों की बचाई जान. भाजपा-कांग्रेस में पथराव हुआ तो उसे तुल देकर मामले को आगजनी तक पहुंचा देंगे.

हमारे अखबार में बड़ी-बड़ी सुर्खियां होगी. लोग हमारे अखबार को चाव से पढ़ेंगे. अखबार का नाम होते ही खूब विज्ञापन मिलेगा. कमाई बढ़ते ही चैनल खोलने की प्लानिंग है. मैंने पूछा- महोदय आप अपना बिजनेस प्लानिंग इतना विस्तार से मुझसे शेयर क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा- बीते 30 सालों तक अखबार और चैनल में भारी कम वेतन में काम करके शोषण का शिकार हुआ हूँ मैं… अब नहीं चाहता कि आप लोग भी मेरे शोषण के शिकार हों… यहां सभी बाउंसर अखबार द्वारा कमाई किए गए पैसे के निर्धारित प्रतिशत के हिस्सेदार होंगे. उन्हें रकम पर्सेंट में बांटी जाएगी. इतना सुनते ही मैंने मन बना लिया था कि अब मैं इस अखबार में शानदार पत्रकारिता करुंगा.

फिर मेरी अचानक नींद खुली… धड़कन बढ़ चुकी थी… मैं सोच रहा था… अरे भाई! कोई ऐसे भी सपने देखता है क्या…? पत्रकारिता की दुनिया में कभी ऐसा भी होता है क्या…? अलसुबह मेरी नींद टूट चुकी थी…कुछ लोग कहते हैं कि रात की अंतिम पहर में देखे गये सपने सच हो जाते हैं…खैर…जो भी हो…मेरा देखा हुआ सपना बेमतलब है… बकवास है…इस सपने का तो सपनों की दुनिया से भी दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है…क्योंकि आप सब जानते हैं पत्रकारिता तो एक मिशन है…पत्रकारिता की पावनता से आप सब रग-रग वाकिफ हैं…मैं तो बस अपना एक बेकार-सा केवल सपना साझा कर रहा था…इस लेख में मैंने सिर्फ अपने सपनों का चित्रण किया है. हकीकत तो इससे भी ज्यादा भयावह और खतरनाक है. सभी से क्षमा के साथ अलविदा…फिर मिलेंगे…

-कंचन ज्वाला कुंदन