नई दिल्ली. हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार कुंवर नारायण नहीं रहे. उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु हिंदी साहित्य के लिए बड़ा झटका है. वे 90 वर्ष के थे.

कुंवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 को यूपी के फैज़ाबाद में हुआ. वे नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं. कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक 1959 के प्रमुख कवियों में रहे हैं. कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है.

कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं. यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है. उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है. ‘तनाव‘ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया है. 2009 में कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के लिए देश के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

जीवन परिचय

उन्होने इंटर तक की पढ़ाई विज्ञान विषय से की लेकिन आगे चल कर वे साहित्य के विद्यार्थी बने और १९५१ में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया. वे उत्तरप्रदेश के संगीत नाटक अकादमी के 1976 से 1979 तक उप पीठाध्यक्ष रहे.

कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. २००९ में पद्मभूषण सम्मान से
सम्मानित किया गया.

पढ़िये कुंवर नारायण की कविता ‘लिपटी परछाइयां’

उन परछाइयों को,
जो अभी अभी चाँद की रसवंत गागर से गिर
चाँदनी में सनी
खिड़की पर लुढ़की पड़ी थीं,
किसने बटोरा?

चमकीले फूलों से भरा
तारों का लबालब कटोरा
किसने शिशु-पलकों पर उलट दिया
अभी-अभी?

किसने झकझोरा दूर उस तरु से
असंख्य परी हासों को?
कौन मुस्करा गई
वन-लोक के अरचित स्वर्ग में
वसन्त-विद्या के सुमन-अक्षर बिखरा गई?
पवन की गदोलियाँ कोमल थपकियों से
तन-मन दुलरा गईं?

इसी पुलक नींद दे
ऐ मायाविनी रात,
न जाने किस करवट ये स्वप्न बदल जाँय !
माँ के वक्षस्थल से लगकर शिशु सोए,
अनमोहे जाने कब
दूरी के आह्वान-द्वार खुल जाँय