दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी के मुख्य सचिव सहित कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को अगली सुनवाई में अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि दिल्ली के अधिसूचित औद्योगिक क्षेत्र अब भी सीवेज लाइन, ड्रेनेज और नालियों जैसे बुनियादी ढांचे के बिना संचालित हो रहे हैं, जो अत्यंत चिंता का विषय है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ एक सुओ-मोटो याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो औद्योगिक क्षेत्रों के पुनर्विकास और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित है।
कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि अगस्त 2023 में इन औद्योगिक इलाकों के पुनर्विकास पर कैबिनेट ने मंजूरी दी थी, लेकिन आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम कौन स्थापित करेगा दिल्ली जल बोर्ड, नगर निगम या कोई अन्य एजेंसी। अदालत ने कहा कि जिम्मेदारी तय न होने की वजह से प्रदूषण और बुनियादी अव्यवस्था लगातार बढ़ रही है।
कोर्ट ने अगली सुनवाई पर दिल्ली के मुख्य सचिव राजीव वर्मा, अतिरिक्त मुख्य सचिव (उद्योग) बिपुल पाठक, DSIIDC के प्रबंध निदेशक नाज़ुक कुमार, MCD कमिश्नर अश्विनी कुमार और DPCC सचिव संदीप मिश्रा को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने इन सभी अधिकारियों को 10 नवंबर तक एक संयुक्त बैठक आयोजित करने और औद्योगिक क्षेत्रों में सीवेज, ड्रेनेज और अन्य बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने के लिए 15 नवंबर तक एक विस्तृत कार्य योजना (Action Plan) कोर्ट में दाखिल करने का आदेश दिया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि इन औद्योगिक क्षेत्रों में कई इकाइयाँ बिना किसी सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम के पहले से ही संचालित हो रही हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे हालात में भूजल के दूषित होने और बिना उपचारित सीवेज के सीधे यमुना नदी में छोड़े जाने का गंभीर ख़तरा है। खंडपीठ ने टिप्पणी की, “यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है।”
इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुनर्विकास से जुड़े सर्वेक्षण और डिज़ाइन तैयार करने वाली तीन सलाहकार एजेंसियों मेसर्स क्रिएटिव सर्किल, मेसर्स सैब्स आर्किटेक्ट्स एंड इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड, और मेसर्स स्क्वायर डिज़ाइन्स के प्रतिनिधि भी 22 नवंबर, 2025 को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों, ताकि वे अब तक की प्रगति और सर्वेक्षण की स्थिति के बारे में अदालत को जानकारी दे सकें।
खंडपीठ ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि लगातार निर्देश जारी किए जाने और कई अंतर-विभागीय बैठकों के बावजूद, कोई भी एजेंसी इन औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा विकसित करने की सुनिश्चित जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आ रही है। अदालत ने कहा कि यह स्थिति शासन और विभागीय समन्वय की गंभीर विफलता को दर्शाती है, जिससे सीधा असर राजधानी के नागरिकों और उद्योगों के संचालन पर पड़ रहा है।
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