नई दिल्ली। भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी और ओलंपियन लक्ष्य सेन को ऐज फ्रॉड (उम्र धोखाधड़ी) के मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें लक्ष्य सेन की जन्मतिथि को लेकर धोखाधड़ी के आरोपों की जांच की अनुमति दी गई थी। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट को नोटिस भी जारी किया है।

क्या है पूरा मामला?

लक्ष्य सेन और उनके भाई चिराग सेन पर जूनियर बैडमिंटन टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए फर्जी जन्म प्रमाण पत्र जमा कराने का आरोप लगाया गया है। यह आरोप नागराजा एमजी नामक व्यक्ति द्वारा लगाए गए थे, जिन्होंने दावा किया कि दोनों भाइयों की उम्र को जानबूझकर कम दिखाया गया ताकि वे जूनियर टूर्नामेंट में हिस्सा ले सकें। नागराजा बेंगलुरु में एक बैडमिंटन एकेडमी चलाते हैं।

दायर एफआईआर में लक्ष्य सेन, उनके भाई चिराग सेन, उनके पिता धीरेंद्र सेन, मां निर्मला सेन और कोच यू विमल कुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 471 (जाली रिकॉर्ड को वास्तविक के रूप में उपयोग करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

लक्ष्य सेन की दलील

सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) में लक्ष्य और चिराग सेन ने दावा किया कि ये आरोप झूठे और दुर्भावनापूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि उनके जन्म प्रमाण पत्र सरकारी दस्तावेजों, सीबीएसई रिकॉर्ड, चिकित्सा प्रमाणपत्रों और पासपोर्ट में दर्ज हैं और उनकी उम्र की पुष्टि दिल्ली एम्स में दो बार की गई चिकित्सा जांच से भी हो चुकी है। दोनों बार मेडिकल रिपोर्ट में उनकी आयु सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार ही पाई गई।

लक्ष्य सेन के वकीलों रोहिणी मूसा, बद्री विशाल और आयुष नेगी ने तर्क दिया कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने आदेश में खिलाड़ियों के इतिहास को ध्यान में नहीं रखा। उन्होंने कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI), और भारतीय बैडमिंटन संघ (BAI) ने भी इस मामले की स्वतंत्र जांच की है और दोनों खिलाड़ियों को क्लीन चिट दी है।

कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला

कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायधीश एमजी उमा ने 19 फरवरी 2025 को लक्ष्य सेन की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि प्रथम दृष्टया आरोप सही साबित होते हैं। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत दस्तावेज प्राप्त कर पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, जिनके आधार पर जांच को आगे बढ़ाने का पर्याप्त आधार बनता है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक?

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता आर्यमा सुंदरम ने तर्क दिया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के बैडमिंटन खिलाड़ियों के अधिकारों और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि जब तक इस मामले पर विस्तृत सुनवाई नहीं होती, तब तक जांच प्रक्रिया को रोका जाना उचित रहेगा। कोर्ट ने कहा कि जब सरकारी एजेंसियों और खेल संगठनों द्वारा दिए गए प्रमाणपत्रों में जन्मतिथि की पुष्टि की जा चुकी है, तो इस तरह के मामले में आपराधिक जांच जारी रखना उचित नहीं है।

आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब मांगा है। अगली सुनवाई की तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी। फिलहाल, इस आदेश के बाद लक्ष्य सेन और उनके परिवार को राहत मिली है।

नागराजा एमजी का दावा

शिकायतकर्ता नागराजा एमजी ने दावा किया था कि लक्ष्य सेन की वास्तविक जन्मतिथि 1998 की है, जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में 2001 दर्ज है। उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त दस्तावेजों और युवा मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट को अदालत में प्रस्तुत किया था, जिसमें दावा किया गया था कि लक्ष्य सेन के पिता ने जन्म प्रमाण पत्र में हेरफेर किया।

लक्ष्य सेन के वकीलों का तर्क

लक्ष्य सेन के वकीलों ने तर्क दिया कि यह शिकायत दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज कराई गई थी। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता नागराजा एमजी की बेटी 2020 में प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी में प्रवेश पाने में असफल रही थी, जिसके कारण उन्होंने लक्ष्य सेन और उनके परिवार के खिलाफ यह मामला दर्ज कराया।

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