अमित पांडेय, डोंगरगढ़। राजनांदगांव जिले के लाल बहादुर नगर में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का मामला अब तूल पकड़ने लगा है. करीब एक महीने पहले अतिक्रमण हटाने के लिए नगर पंचायत ने नोटिस जारी किया था, लेकिन न तो कब्जाधारियों ने जमीन खाली की, न ही प्रशासन ने आगे कोई कदम बढ़ाया. वार्ड नंबर 14 स्थित डोंगरगढ़ मेन रोड के किनारे सरकारी जमीन पर दर्जनभर लोगों ने कब्जा कर रखा है, जिसकी दूरी राष्ट्रीय राजमार्ग से महज दो किलोमीटर है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कब्जे की शिकायत पहले ग्राम पंचायत में भी की गई थी, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब नगर पंचायत बनने के बाद मामला दोबारा सुर्खियों में आया है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर फिर वही ढिलाई दिखाई जा रही है.


दबाव में कार्रवाई के आरोप
1 सितंबर को नगर पंचायत ने रोड किनारे बने कुछ अवैध निर्माणों पर नोटिस जारी किया था. इसके बाद 10 सितंबर को कारण बताओ नोटिस भेजा गया. जब कब्जा नहीं हटा तो 25 सितंबर को प्रशासन ने दो अतिक्रमणों पर कार्रवाई की, लेकिन उसी दिन तीसरे कब्जाधारी को केवल समझाइश देकर छोड़ दिया गया. अब एक महीना बीत चुका है, मगर बाकी अतिक्रमण जस के तस हैं, जिससे अधिकारियों पर पक्षपात के आरोप लगने लगे हैं. वार्ड पार्षदों के मुताबिक, कुएं के सामने वाली सरकारी जमीन पर गार्डन बनाने का प्रस्ताव पास हुआ है और इसके लिए निधि भी स्वीकृत हो चुकी है. बावजूद इसके, जमीन अब तक खाली नहीं कराई गई. इससे पहले यहां कचरा पात्र और हैंडपंप लगाने का भी प्रस्ताव आया था, लेकिन स्थानीय निवासियों के विरोध के चलते उसे दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया.
जर्जर कुआं बना खतरा, हैंडपंप पर कब्जा
वार्ड का इकलौता सरकारी कुआं पूरी तरह जर्जर हालत में है. उसके गिरने से दुर्घटना की आशंका बनी हुई है, फिर भी न तो पुराने सरपंच ने ध्यान दिया, न ही वर्तमान पार्षद और अध्यक्ष कुछ कर रहे हैं. इधर, वार्ड नंबर 13 और 14 के दो सरकारी हैंडपंपों पर लोगों ने कब्जा जमा लिया है. यही नहीं, तालाब के किनारे तक की जमीन पर भी पक्के निर्माण और दीवार घेराव कर दिए गए हैं. वार्ड नंबर 13 का एक सरकारी हैंडपंप जब खराब हुआ, तो उसे ठीक कराने के बजाय पीएचई विभाग के अधिकारी निकालकर ही ले गए. अब उस जगह पर भवन निर्माण हो चुका है और हैंडपंप का कोई अता-पता नहीं. मोहल्ले के लोगों को अब एकमात्र बचा हैंडपंप ही सहारा है, जो अक्सर खराब रहता है.

अतिक्रमण मामले में प्रशासनिक जवाबदेही का टालमटोल रवैया भी सामने आया है. मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) का कहना है कि अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी तहसीलदार की है, जबकि तहसीलदार का कहना है कि यह नगर पालिका का काम है. दोनों अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपते नजर आए, जिससे स्पष्ट है कि प्रशासन की नीयत ही नहीं है.
वहीं इस मामले पर जब एलबी नगर के सीएमओ शैलेश पांडेय से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी और बढ़ गई है. लोगों का कहना है कि यदि नियम सबके लिए समान हैं, तो कार्रवाई भी सभी पर एक समान होनी चाहिए, फिर चाहे वह आम नागरिक हो या किसी पद पर बैठा अधिकारी. अब सवाल यही है कि लाल बहादुर नगर की सरकारी जमीन आखिर किसके कब्जे में रहेगी?
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