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पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द. जिस खाद बिक्री की ऑनलाइन मॉनिटरिंग दिल्ली से हो रही, उसे ओड़िशा का कोचिया बेखौफ होकर छत्तीसगढ़ में खपा रहा है. तिल्दा रेक पॉइंट से धमतरी ट्रांसपोर्ट के जरिए धमतरी के फर्म की यूरिया गरियाबन्द के घने जंगलों में बसे गांव पहुंच गई. कोचिए को ग्रामीणों का पूरा समर्थन है. जिसके कारण कृषि विभाग की टीम को बगैर कार्रवाई किए खाली हाथ लौटना पड़ा.
बता दें कि, मैनपुर ब्लॉक के घने जंगल में बसे अमाड़, कूमकोट और जेजेअमली में 22 जनवरी को लगभग 100 किसानों को 1200 बोरा यूरिया बेचा गया है. यूरिया धमतरी के जिटीसी ट्रांसपोर्ट की गाड़ियों से पहुंची थी. जब मामले की सूचना कृषि विभाग को मिली तो मैनपुर से कृषि विभाग की एक टीम अमाड़ पहुंची. हालांकि, उस समय तक एक ट्रक यूरिया अनलोड कर चुकी थी. जबकि, दूसरी ट्रक क्रमांक सीजी 04 एल वॉय 8127 को खाली करने की तैयारी हो रही थी. विभाग जैसे ही कार्रवाई की तैयारी की तो ग्रामीणों की भीड़ लग गई. ग्रामीणों के दबाव के चलते टीम को बिना कार्रवाई किए खाली हाथ लौटना पड़ा. वहीं मामले की जानकारी आला अधिकारियों को दी गई.
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वहीं कार्रवाई के लिए बल की जरूरत थी. इलाका नक्सली क्षेत्र होने के कारण अति संवेदनशील है, इसलिए पुलिस बल की सहमति नहीं बन सकी. मौके पर जब उर्वरक निरीक्षक पहुंचे तो ट्रक गायब मिला. मामले में कृषि उपसंचालक संदीप भोई ने कहा कि, माहौल बिगड़ते देख टीम वापस आई. सुरक्षा के अभाव में कार्रवाई नहीं किया जा सका.
मवेशी, फिर मक्का अब खाद का कारोबार
जानकारी के मुताबिक, खाद का अवैध काम मिंटू ढाली नामक एक युवक कर रहा है. मिंटू नवरंगपुर जिले के रायघर ब्लॉक के भारसुंडी गांव का रहने वाला है, जो पिछले 4 साल से अमाड़ में एक कच्चे मकान में किराए से रहता है. साल भर पहले तक यह मवेशी लोकल में खरीदी कर रायघर पहुंचाया करता था. बीते खरीफ सीजन में मिंटू ने अमाड़ और पास के लगे गांव से मक्का की खरीदी कर लिया. लगभग 40 लाख का मक्का उठाया, जिसमें आधी रकम ही किसानों को दी.
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वहीं बाकी रकम रोककर उसके बदले खाद की होम डिलवरी कर रहा. अब तक 1200 बोरा यूरिया दिया है. इतने ही मात्रा की उसे और जरूरत है. विभागीय दबिश के बाद अब बाहर की गाड़ी से यूरिया मंगाना बन्द कर दिया है. पिछले दो दिनों से ढाली अमलीपदर, देवभोग के व्यापारियों से यूरिया सौदा करने में जुटा है. उसने ओड़िशा से भी सम्पर्क किया है पर अब खाद देने कोई तैयार नहीं हो रहा.
मॉनिटरिंग के बाद भी इतनी बड़ी चूक कैसे?
खाद की बिक्री की ऑनलाइन मोनिटरिंग दिल्ली से होती है. जिस क्षेत्र का अधिकृत विक्रेता अपने ही क्षेत्र में खाद बेंच सकता है. इसके बदले क्रेता किसान को विक्रेता फर्म को आबंटित पॉस मशीन में अंगूठे और आधारकार्ड की एंट्री होती है. विक्रेता भी उसी फर्म से खाद ला सकता है, जिसे विभाग से अधिकृत किया गया हो. होलसेल, रिटेलर से लेकर किसान तक की बिक्री जिले के मॉड्यूल से होता है. इन्ही प्रकिया के बाद केन्द्र सरकार से खाद में मिलने वाली मोटी सब्सिडी कम्पनी को आती है. बावजूद इसके धमतरी के फर्म की खाद सीधे तिल्दा रेक पॉइंट से होकर गरियबन्द जिले के घने जंगलों में पहुंच गई. कोई कार्रवाई का न हों पाने से सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है.
खाद के नाम पर पहले भी ठगे गए हैं किसान
2005 में गोहरापदर में एक मकान में किराए पर रहने वाला पिंटू विश्वास पहले हल्दी मिर्ची का कारोबार किया. फिर गल्ला के एवज में खाद औऱ नगद देने का झांसा देकर किसानों का लाखों लेकर रफू चक्कर हो गया. 2013 में झरगांव में भी इसी तरह नवरंगपुर जिले से एक बंगाली आकर डेरा डाला हुआ था, जिसने खाद बीज के एवज में लाखों की उगाही कर ठगने के फिराक में था. मामला समझ में आया तो उसे गांव से खदेड़ दिया गया था. अमाड़ क्षेत्र के किसान भी बाहरी व्यक्ति के चक्कर में आ गए हैं. खाद बेचने वाला शख्स बाजार भाव से ज्यादा कीमत में मक्का की खरीदी कर भरोसे में ले रहा है. लेकिन 300 से 350 रुपये के खाद के एवज में ज्यादा कीमत वसूल रहा है.
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