सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) में 360 करोड़ से ज़्यादा के रीएजेंट और उपकरण खरीदी में लंबा खेल हुआ है. मोक्षित कॉर्पोरेशन और उनकी संस्थाओं पर आरोप है कि जिस अस्पताल में लैब नहीं है, वहां उन्होंने खून की जांच में उपयोग होने वाला रीएजेंट के साथ मशीनों की भी सप्लाई कर दी. एक-दो नहीं बल्कि 200 से अधिक अस्पताल से जुड़े मामले की जांच स्वास्थ्य विभाग ने शुरू कर दी है. इसे भी पढ़ें : अयोध्या में मिली हार के बाद योगी सरकार की नीति में बड़ा बदलाव, स्थानीय व्यापारियों ने किया स्वागत…
स्वास्थ्य विभाग की प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इन हॉस्पिटल ने उपकरणों के लिए कोई डिमांड नहीं भेजा था. स्वास्थ्य विभाग के सीएससी, पीएससी, जिला अस्पताल, और अंबेडकर के साथ-साथ डीकेएस अस्पतालों में भी सप्लाई में लंबा खेल कर दिया है. इस पूरे मामले की शिकायत पिछले दिनो मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से की गई थी, जिसके बाद अब विभाग हरकत में आया है और उन्होंने जांच शुरू कर दी हैं.
इसे भी पढ़ें : तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम में आने वाले भक्तों को मिलेगा यादगार अनुभव, नए ईओ ने दिलाया भरोसा…
बगैर डिमांड कैसे हो गई सप्लाई ?
स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते है कि मोक्षित कॉर्पोरेशन अपने और कई अलग-अलग नामों से टेंडर लेकर स्वास्थ्य विभाग में सप्लाई का काम करता है. जांच में पता चला है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आउटर में उरला, भनपुरी, बिरगांव, मंदिरहसौद और अभनपुर स्थित स्थित सीएससी-पीएससी में हार्ट, लीवर, पेंक्रियाज, अमोनिया लेवल और हार्ट अटैक की जांच करने वाला रीएजेंट सप्लाई किया है, जबकि इनकी जांच पीएससी में होती ही नहीं है.
इतना ही नहीं जहां ये सप्लाई किया गया है, वहां जांच करने वाले जरूरी उपकरण और मशीनें ही उपलब्ध नहीं है. अब सवाल ये है कि यदि उपकरण ही नहीं है तो रीएजेंट क्यों सप्लाई की गई? कई शासकीय अस्पताल तो ऐसे भी हैं, जहां करोड़ों रुपए के रीएजेंट केवल खपाने के चक्कर में डंप करवा दिए गए हैं.
इसे भी पढ़ें : सिख अलगाववादी पन्नून की हत्या की साजिश में आरोपी भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता अमेरिका प्रत्यर्पित…
सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर करते हैं इलाज
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि लीवर फंक्शन टेस्ट केवल सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर लिखते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एडिनोसिन डीएम इमेज रीएजेंट भेज दिया गया है. इस रीएजेंट से लीवर फंक्शन की जांच की जाती है. इस जांच की सुविधा भी आउटर या शहर के किसी भी छोटे हेल्थ सेंटर में नहीं है. इसके बावजूद यहां भेज दिया गया है.
आईसीयू में करते हैं जांच
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक एलडीएलबी लीवर फंक्शन की जांच केवल आईसीयू में की जाती हैं. इसके बावजूद सिरम लिपेस रीएजेंट भी बड़े पैमाने पर सप्लाई कर दिया गया है. इसी तरह मैग्नीशियम सीरम की जांच भी केवल आईसीयू में भर्ती मरीजों के लिए पड़ती है. इसे भी छोटे अस्पतालों में सप्लाई कर खपा दिया गया है.
इसे भी पढ़ें : भू-माफिया के बुलंद हौसले, समाज के सैकड़ों साल पुराने मुक्तिधाम पर पर चला दिया ट्रैक्टर, थाने पहुंचे लोग…
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों और जानकारों ने इस बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि कुछ जांच ऐसी होती है जो केवल सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर करवाते हैं. प्रायमरी हेल्थ सेंटरों में प्रारंभिक जांच में किसी तरह की गड़बड़ी निकलने पर छोटे सेंटरों से मरीजों को सुपर स्पेशलिटी अंबेडकर अस्पताल रिफर किया जाता है. सुपर स्पेशलिटी या अंबेडकर अस्पताल में ही जांच के लिए उपकरण व मशीनें हैं.
जहाँ ज़रूरत नहीं वहाँ भी की गई सप्लाई
डाक्टर के जरूरत के हिसाब से पेट, हार्ट, लीवर, किडनी से संबंधित बड़ी जांच करवाते हैं. हैरानी की बात है कि छोटे हेल्थ सेंटरों में एमबीबीएस डाक्टर पदस्थ किए गए हैं. ये डॉक्टर ब्लड शुगर, हीमोग्लोबीन जैसी सामान्य जांच ही करवाते हैं. उसी में किसी तरह की गड़बड़ी सामने आने पर वे मरीजों को बड़े अस्पताल भेज देते हैं. ऐसे में छोटे सरकारी अस्पतालों में लीवर, किडनी जैसी बड़ी जांच की जरूरत ही नहीं पड़ती है.
इसे भी पढ़ें : रायपुर के श्री धाम सुमेरूमठ में अघोर महोत्सव 21 से 25 तक…
कहाँ क्या भेजना था इसकी भी नहीं थी जानकारी
अमोनिया रीएजेंट भी बड़ी मात्रा में शहर और आउटर के हेल्थ सेंटरों में सप्लाई किया गया है. इस रीएजेंट से अमोनिया लेवल का टेस्ट किया जाता है. ये जांच भी सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर लिखते हैं, जो पीएससी में पदस्थ ही नहीं हैं. लैब में इसकी जांच करने वाला उपकरण भी उपलब्ध नहीं है. कार्डियेक मार्कर हार्ट अटैक की स्थिति में उपयोग होता है. इसकी जांच की सुविधा भी पीएससी में नहीं है. इसके बावजूद लाखों का कार्डियेक मार्कर रीएजेंट सप्लाई कर दिया गया है. इसी तरह पेट की जांच के लिए सीरम माइलेज भी बड़े पैमाने पर भेज दिया गया है
मशीन ही नहीं कैमिकल भेज दिए
ब्लड थिकनेस यानी खून का थक्का जमना कोविड के दौरान ब्लड की थिकनेस की जांच के लिए टी टाइमर रीएजेंट का उपयोग किया जाता था. इससे ये पता चलता था कि खून थक्का तो नहीं बन रहा है. ये जांचने की सुविधा किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नहीं है. यहां तक कि जरूरी उपकरण बायोकेमेस्ट्री एनालाइजर भी नहीं है, इसके बावजूद इसकी थोक में सप्लाई कर दी गई है.
इसे भी पढ़ें : छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों के लिए सिर्फ 1 कॉलेज, स्कूलों का भी ठिकाना नहीं… दिव्यांग पूछ रहे- क्या मुझे पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं ?
ऐसे हुआ ख़ुलासा?
प्रदेश भर में मनमाने तरीक़े से मशीन और रीएजेंट की सप्लाई के बाद सीएसी, पीएससी, जिला अस्पताल के अधीक्षक चौंक गए. फिर लगभग प्रदेशभर से 200 से ज़्यादा अलग-अलग हॉस्पिटल से सीजीएमसी को पत्र पहुँचा. इसमें स्पष्ट लिखा है जिस रीएजेंट, मशीन की सप्लाई उनके हॉस्पिटल में की गई है, उस स्तर की जाँच हॉस्पिटल में नहीं की जाती है. ना लैब है, ना ही जाँच के लिए मशीन और ना जाँच करने के लिए टेक्नीशियन. जहाँ जाँच होती है, वहाँ पर्याप्त मात्रा में केमिकल उपलब्ध है, इसलिए सप्लाई रीएजेंट, मशीन को वापस ले लिया जाए.
होगी कार्रवाई
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम से बातचीत करते हुए स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कैमिकल और मशीन सप्लाई में भ्रष्टाचार की बात संज्ञान में आई है. इसको लेकर जाँच करने को कहा है. जैसे ही जाँच रिपोर्ट आती है कार्रवाई की जाएगी. सप्लाई करने वाले मोक्षित कॉर्पोरेशन का लगभग 360 करोड़ का भुगतान बाक़ी है, जिसे फिलहाल रोक दिया गया है. जाँच रिपोर्ट के अनुसार, आगे कार्रवाई की जाएगी.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक