हेमंत शर्मा, इंदौर। लल्लूराम डॉट काम की खबर का बड़ा असर हुआ है। खबर प्रकाशन के बाद मामला केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक पहुंचा। केंद्रीय मंत्री ने MP के DGP को फोन कर नाराजगी जताई और साफ तौर पर कहा– इस तरह की गुंडागर्दी पर तुरंत FIR दर्ज की जाए। अब DGP के निर्देश थे, तो इंदौर पुलिस हरकत में आई। लेकिन जैसे ही कार्रवाई का वक्त आया, मामला फिर “अज्ञात” के नाम पर दर्ज कर लिया गया! जबकि सीसीटीवी फुटेज में कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट के पिछले विभाग जल संसाधन विभाग के जल प्रभारी रहे प्रहलाद पटेल के पोते कुलदीप पटेल सीसीटीवी फुटेज में कंप्यूटर तोड़ते हुए साफ दिखाई दे रहे हैं। पुलिस पूरी तरह से मौन और खानापूर्ति करते हुए गाड़ी नंबर के आधार पर चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया जबकि तोड़फोड़ करने वाले कैबिनेट मंत्री के खास समर्थक थे।

आरोपियों को चिन्हित किया जा रहा

सूत्रों के मुताबिक इनमें डकाचिया गांव के पूर्व सरपंच का पोता भी शामिल है जो अक्सर मंत्री के साथ देखा जाता है। अब सवाल ये उठता है कि जिस शिप्रा थाने की खुफिया टीम हर छोटे-छोटे मामलों में पहचान निकाल लाती है, वो CCTV में दिख रहे चेहरों को नहीं पहचान पा रही? या फिर पहचानना नहीं चाहती? लल्लूराम डॉट कॉम ने जब इस मामले में शिप्रा थाना प्रभारी से बात की तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा – गाड़ी नंबर के आधार पर ड्राइवर की पहचान हुई है, बाकी आरोपियों को चिन्हित किया जा रहा है।

केंद्रीय मंत्री के विभाग की सीधी दखल

अब जनता भी समझ रही और सवाल पूछ रही है – क्या मंत्री जी का क्षेत्र होने के कारण पुलिस एफआईआर में नाम दर्ज करने से बच रही है? इस पूरे मामले ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि जहां सत्ता का दबाव हो, वहां सिस्टम की रीढ़ झुक ही जाती है। लेकिन इस बार मामला स्थानीय नहीं था। केंद्रीय मंत्री के विभाग की सीधी दखल ने पुलिस को मजबूरी में सही दिशा में कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।

यह था मामला

दरअसल मामला कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट के करीबी समर्थकों का जिन्होंने टोल नाके पर जमकर हंगामा किया था। कर्मचारियों से बदसलूकी की, टोल पर लगे कंप्यूटर और बूथ तोड़ दिए। ये सब कुछ कैमरे में रिकॉर्ड हुआ। CCTV फुटेज में एक-एक चेहरा साफ नजर आ रहा है। फिर भी, दो दिन तक इंदौर की पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। कहानी यहीं से मोड़ लेती है, जब Lalluram.com ने इस पूरी घटना को प्रमुखता से अपनी वेबसाइट पर उजागर किया। खबर इतनी तेज़ी से वायरल हुई कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय तक मामला पहुंच गया।

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