रेखराज साहू, महासमुंद। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वकांक्षी गोधन न्याय योजना का आज महासमुंद जिले के कछारडीह गोठान में गाय को हरा चारा खिलाकर प्रभारी मंत्री कवासी लखमा ने गोधन न्याय योजना का जिले में शुभारंभ किया. योजना के तहत सरकार महासमुंद जिले के 76 गौठानों में 2 रुपए प्रति किलो की दर से गोबर की खरीदी करेगी. इस योजना से पशुपालकों की आय में इजाफा होगा, वहीं पशुओं के खुले में चरने की समस्या पर रोक लगेगी.
गोधन न्याय योजना को lalluram.com ने महासमुंद की जनता की राय जानने का प्रयास किया. अधिवक्ता टी दुर्गा राव कहते हैं कि सड़कों पर बैठने वाली, इधर-उधर भटकने वाली गायों का सरकार पुनर्वास नहीं कर पा रही है. जो लोग गोबर बेचेंगे वे घर में पाल रहे गाय, बैल या भैंसों का ही गोबर इकट्ठा करके बेचेंगे, लेकिन रोज रात को गाय गोबर से सड़क को गंदा कर रही है, उनका क्या होगा. सरकार पहले इधर-उधर भटक रही गायों को गौठानों तक पहुंचाया जाए, तभी वास्तव में इस योजना का लोगों को फायदा मिलेगा.
भूषण साहू कहते हैं कि इस योजना से उम्मीद है कि जो रास्ते में गाय घूमते रहती हैं, उनसे मुक्ति मिलेगी. फसलों को होने वाला नुकसान भी नहीं होगा. गोबर खरीदने से पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा, लेकिन गोबर के दाम को 2 रुपए से 5 रुपए करना चाहिए. वर्मी कम्पोस्ट से जैविक खेती की अगर बात करें तो रासायनिक खादों से छुटकारा मिलेगा, जिससे किसान कम खर्चे में अच्छी फसल ले पाएंगे. उनकी मेहनत की कमाई भी उसे अच्छी मिलेगी. गोबर इकट्ठा करने या खरीदने के बारे में मैंने भी वर्षों पहले सोचा था, जो आज सरकार के माध्यम से पूरा हो रहा है. इससे खुशी हो रही है. लेकिन सरकार को गोबर का दाम बढ़ाना चाहिए.
शिक्षक के साथ-साथ किसानी करने वाले महेन्द्र कुमार पटेल कहते हैं कि गोधन न्याय योजना के सुव्यवस्थित क्रियान्वयन से किसानों को आर्थिक लाभ तो होगा, साथ ही महिलाओं व बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा, पशुपालन के प्रति लोगों मे रुझान बढेगा, जैविक खाद के निर्माण से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा. वहीं गोबर के संग्रहण से स्वच्छता बढ़ेगी. पशुपालन को बढ़ावा मिलने से दूध-घी उत्पाद की मात्रा में वृद्धि होगी. रास्ते में दुर्घटनाओं में मरने वाले पशुओं में कमी आएगी. इसके साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी, साथ ही रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आएगा. इस तरह गोधन योजना से हर दृष्टि से लाभ ही लाभ है.
किसान ललित चंद्रनाहु कहते हैं कि विगत 15-20 वर्षों से गांव में गौ पालन लगभग समाप्त हो गया है. 20 वर्षों में मवेशियों की संख्या में 60% तक कमी आई गई है. बैल-भैंस की जगह आज ट्रैक्टर और अन्य चीजों से खेती-किसानी कर रहे हैं. डेयरी के हिसाब से गो पालन हो रहा है. इस योजना का किसानों और गो पालकों की अपेक्षा डेयरी वालों को होगा. गोबर के दाम में बढ़ोतरी की मांग भी डेयरी वाले ही कर रहे हैं, क्योंकि इसका पूरा लाभ उन्हीं को मिलेगा. आज जरूरत इस बात की है कि हर 10 किमी में एक गौशाला बनाएं, जिसमें घुमंतू मवेशियों को भी रखा जा सकता है. दूध उत्पादन भी किया जा सकता है, गोबर भी इकट्ठा किया जा सकता है. दुग्ध संघ में भी सुधार करें, इससे सरकार को अच्छा प्रतिसाद मिलेगा.