रायपुर. छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य पंडवानी को विश्व में पहचान दिलाने वाली पहली महिला कलाकार तीजन बाई आज अपना जन्मदिन मना रही हैं. चार दशक से भी लंबे समय से पंडवानी की कला के प्रति समर्पण का ही नतीजा है कि भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण के बाद अब पद्मविभूषण के सम्मान से नवाजा है. जिस मृतप्राय कला को उन्होंने शिखर पर पहुंचाया उसे चिरस्थाई बनाने के लिए तीजन बाई आगामी पीढ़ी को पारंगत करने में जुटी हैं.
सीएम बघेल ने दी जन्मदिन की बधाई
पद्मविभूषण तीजन बाई को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर जन्मदिन की बधाई दी है. छत्तीसगढ़ी बोली में बधाई देते हुए सीएम ने कहा कि पद्म विभूषण तीजन बाई हमर छत्तीसगढ़ के गौरव है. पंडवानी ला दुनिया भर में पहिचान देवाय बर तीजन बाई अथक परिश्रम करे हे. वो शतायु होवएं, जनमदिन के बहुत बधाई.
पद्म विभूषण तीजन बाई हमर छत्तीसगढ़ के गौरव हे। पंडवानी ला दुनिया भर मा पहिचान देवाए बर तीजन बाई अथक परिश्रम करे हे।
वो शतायु होवएं, जनमदिन के बहुत बधाई।— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) April 24, 2019
13 साल में पहली बार दी मंच में प्रस्तुति
24 अप्रैल 1956 को प्रदेश के भिलाई शहर के नजदीक गनियारी में हुनुकलाल पारधी और सुखवती के घर जन्मीं तीजन बाई बालपन से ही पंडवानी की ओर अपने नाना ब्रजलाल के देख-सुनकर आकर्षित हुईं. महज 12 साल की उम्र में जब तीजन बाई ने इकतारा संभाला तब महिलाएं बैठकर ही महाभारत की कथा सुनाती थीं, जिसे वेदमती शैली कहा जाता है. लेकिन तीजन ने पंडवानी को पुरुषों की तरह खड़े कापालिक शैली को अपनाया. उसकी प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें इस लोककभा में और साधने का काम किया. तीजन बाई के सीखने की ललक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 13 साल की उम्र में ही दुर्ग जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर स्थित चंद्रखुरी गांव में अपनी पहली प्रस्तुति दी.
हबीब तनवीर ने दी नई ऊंचाई
तीजन बाई के साथ पंडवानी की कला को देश के पटल पर लाने का काम हबीब तनवीर ने किया. छत्तीसगढ़ के मूल निवासी रंगकर्मी हबीब तनवीर ने किसी माध्यम से तीजन बाई के बारे में सुन हुआ था. ऐसे में जब छत्तीसगढ़ को कला को प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी के सामने प्रस्तुत करने का मौका मिला तो उन्होंने तीजन बाई को ही चुना. इस एक अवसर से ही तीजन बाई छत्तीसगढ़ से बढ़कर राष्ट्रीय कलाकार में तब्दील हो गई. दो साल पहले एक मैग्जीन को दिए साक्षात्कार में तीजन बाई ने बताया कि उस दौरान पूरे 13 दिन दिल्ली के अशोका होटल में रखकर आयोजन की तैयारी की. उस आयोजन के बाद हबीब तनवीर से कभी मुलाकात नहीं हुई.
महाभारत करती नहीं सुनाती हूं
तीजन बाई उस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात का जिक्र करते हुए बताती हैं कि इंदिरा जी ने मुझे तीन मूर्ति में आमंत्रित कर सम्मानित किया. इस दौरान इंदिरा गांधी ने मुझसे मजाकिया लहजे में कहा कि आप तो छत्तीसगढ़ में महाभारत करती होंगी. उस पर मैने जवाब दिया कि मैं महाभारत सुनाती हूं. इस पर इंदिरा जी हबीब तनवीर की ओर मुड़कर कहा कि कौन कहता है तीजन अनपढ़ है. इस आयोजन ने तीजन बाई के साथ-साथ पंडवानी की दिशा की बदल दी. इसके बाद तीजन बाई के देश-विदेश के अनेकों विशिष्ट लोगों से मुलाकात करने और देश-विदेश में पंडवानी को प्रस्तुत करने का दौर शुरू हो गया.
नई पीढ़ियों के लिए बनी प्रेरणा
तीजन बाई ने पंडवानी की जिस कापालिक शैली में पारंगत हासिल किया. उनकी प्रेरणा से अनेक महिला कलाकारों ने भी उसे अपनाया है. इनमें एक नाम रितु वर्मा का आता है. रितु वर्मा ने भी छोटी से उम्र में कला की ऊंचाइयों को छुआ. इसके अलावा अन्य कलाकारों के लिए दूसरा फायदा यह हुआ कि अब उन्हें लोगों को पंडवानी के बारे में बताने की जरूरत महसूस नहीं होती. इसके अलावा अब पंडवानी का आयोजन पहले की तुलना में कहीं व्यापक स्तर पर गांव-देहात में होने लगा है, और नए कलाकार भी सामने आते जा रहे हैं. इससे अब पंडवानी के चिरस्थाई होने का भरोसा बन चुका है.