रायपुर- भू राजस्व संहिता में राज्य सरकार का संशोधन विधेयक आज विधानसभा में पारित हो गया. विधेयक के नए प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए विपक्ष ने मत विभाजन मांगा. विधेयक के पक्ष में 43 और विपक्ष में 31 मत पड़े. इससे पहले राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा कि भू अर्जन की प्रक्रिया सरल होने से विकास में आ रही अड़चनें दूर होंगी. राज्य का तेजी से विकास होगा. पांडेय ने कहा कि- सरकार की मंशा साफ है. कानून में संशोधन का आशय आदिवासियों की जमीनों का दुरूपयोग करना नहीं है. कहीं भी आदिवासियों की जमीनों का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा.
इधर विपक्ष के आदिवासी विधायकों समेत समूचे विपक्ष ने भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक का विरोध किया. नेता प्रतिपक्ष टी एस सिंहदेव ने कहा कि- आज यदि आदिवासियों की जमीन को लेकर कानून नहीं बना होता, तो उनकी जमीन बचती ही नहीं, लिहाजा इस कानून के संशोधन पर किसी तरह का विचार नही किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में कलेक्टरों की अनुमति से जमीन बेचने का अधिकार आदिवासियों के पास हैं. ऐसे में संशोधन लाने की सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं है. विकास योजनाओं के नाम पर सरकार आदिवासी जमीन भी सहमति से ले सकती है. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जल्दबाजी में यह संशोधन विधेयक नहीं लाया जाना चाहिए. उन्होंने इस संशोधन विधेयक को सलेक्ट कमेटी को सौंपे जाने की मांग की. टी एस सिंहदेव ने कहा कि- विधेयक के नए प्रावधानों को लेकर पुनर्विचार की जरूरत है. आदिवासियों की जमीनों को बेचने का खुला अधिकार सरकार को मिल जाये ये अनुचित है.
पीसीसी चीफ भूपेश बघेल ने कहा कि धाराओं का दुरुपयोग किया जा रहा है. इस संशोधन विधेयक को सलेक्ट कमेटी को भेज दिया जाए. इस पर गहन विचार किये जाने की जरूरत है. संशोधन से पहले आदिवासी समाज की राय ली जानी चाहिए. कांग्रेस के आदिवासी विधायक मोहन मरकाम ने कहा कि- पाँचवी अनुसूची के तहत आदिवासियों की जमीनों को संरक्षण मिलता है. नये संशोधन से असंतोष फैलेगा. उन्होंने कहा कि लोहंडीगुड़ा और नगरनार में आदिवासियों ने जमीन दिया था, लेकिन क्या हासिल हुआ. जमीन देने के बाद भी आदिवासियों को कोई फायदा नहीं हुआ. जनजातियों के हितों की रक्षा नहीं हो रही. उनकी जमीन हड़पी जा रही है. बीजेपी विधायक देवजीभाई पटेल ने कहा कि- संशोधन को मैं समर्थन देता हूँ लेकिन जमीन अधिग्रहण करने के एवज में दिए जाने वाले मुआवजा राशि पर एक बार पुनर्विचार किया जाना चाहिए. वहीं निर्दलीय विधायक विमल चोपड़ा ने कहा- ऐसे कई मामले सामने है जहां जमीन आदिवासियों को वापस नहीं लौटाई गई. मुआवजे के समय राजस्व विभाग कई त्रुटियां करता है, इसलिए मुआवजा कम से कम तय करने की कोशिश की जाती है. रजिस्ट्री सड़क के करीब से करते है, लेकिन मुआवजा देते वक्त सड़क के बीच से मुआवजे की राशि निर्धारित की जाती है.

मत विभाजन से मची आपाधापी

जिस वक्त नेता प्रतिपक्ष ने संशोधन विधेयक के विरोध में मत विभाजन की मांग की. उस वक्त सत्तापक्ष के ज्यादातर विधायक सदन में मौजूद नहीं थे. जबकि विपक्षी खेमे में तमाम विधायकों की मौजूदगी थी. मत विभाजन के बाद लाॅबी को खाली कराया गया और मत के लिए बेल बजाई गई. बेल बजने के बाद बीजेपी के तमाम विधायक सदन में पहुंचे. प्रस्ताव के पक्ष में 43 और विपक्ष में 31 मत पड़े और संशोधन विधेयक पारित हो गया.

संशोधन की जरूरत क्यों ?

मौजूदा कानून के तहत शेड्यूल एरिया में जमीन आदिवासी, आदिवासी को ही बेच सकता है. भू राजस्व संहिता संशोधन की धारा 165 की उपधारा 2 में किये गए संशोधन के बाद सरकार आदिवासियों से जमीन खरीद सकती है. सरकार अपनी जरूरतों के आधार पर जमीन का इस्तेमाल करेगी. भूमि अधिग्रहण कानून पहले से ही है, जिसकी तहत सरकार जमीनों का अधिग्रहण कर सकती हैं, लेकिन आपसी सहमति से जमीन लेने के लिए यह संशोधन किया गया है. नए संशोधन में सरकार ने कहा है कि जमीन लेने के बाद इसे निजी क्षेत्र को नहीं दिया जाएगा, लेकिन सीएसआईडीसी को यह जमीन दी जा सकेगी. सरकार का दावा है कि आदिवासियों से जमीनें लेने के बाद विकास कार्यों में आ रही तकनीकी अड़चनें दूर होंगी. जमीन के ऐवज में मिलने वाली राशि का भुगतान में भी तेजी आएगी.