विक्रम मिश्र, लखनऊ. नजूल की संपत्ति को लेकर आज तक स्वतंत्र भारत मे कोई कानून है ही नहीं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा पहली बार इसको लेकर नजूल एक्ट सदन में पेश किया गया. लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में स्थान बना लिया है.
बता दें कि 1895 में ब्रितानिया सरकार में गवर्मेंट ग्रांड एक्ट लाया गया था. जिसके भीतर ज़मीन को लीज पर लेने का प्रावधान किया गया था. तबकी शहरों की आबादी भी बहुत कम थी और कृषि योग्य भूमि बहुतायत थी. जिनकी कीमतें भी बहुत ज़्यादा थी. इसीलिए शहरों की जमीनों को टुकड़ो में तोड़कर अंग्रेज़ी शासन ने लीज पर देने का फैसला किया था. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. वर्ष 2020 में अंग्रेज़ो द्वारा बनाए गए एक्ट को दोबारा पेश किया था. गवर्मेंट ग्रांड एक्ट में रिन्युअल का प्रावधान है. किंतु उसमें रहने वाला व्यक्ति जमीन का मालिक नही बन सकता था. ना ही वो किसी अन्य को ज़मीन बेचने का हकदार है.

फ्रीहोल्ड का कोई कानून नहीं है

वर्ष 1992 में फ्री होल्ड ज़मीन को लेकर एक पॉलिसी लाई गई थी. जबकि आवास विभाग के अनुसार अदालती आदेश के आधार पर कहा गया कि किसी ज़मीन फ्री होल्ड नही कराया जा सकता है. बस यही सन था जहां से दलालों ने फ्री होल्ड का खेल शुरू हो गया.

पड़ताल में सामने आए मामले

नजूल की जमीन हड़पने का लिए अनराजिस्टर्ड वसीयतनामा करवाया जाता है फिर धारा 173 का हवाला देकर सम्बंधित व्यक्ति अदालत चला जाता है.

एक्ट बन जाने से किसी व्यक्ति का नहीं हो सकेगा नजूल भूमि पर कब्ज़ा

नजूल एक्ट प्रभावी होने की दशा में उत्तर प्रदेश की किसी भी ज़मीन पर प्राइवेट व्यक्ति, कम्पनी, संस्था के पक्ष में फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा. जबकि फ्री होल्ड की लीज खत्म होने की दशा में सरकार उसे सार्वजनिक हित जैसे अस्पताल, विद्यालय, कार्यालय इत्यादि के लिए जमीन का इस्तेमाल कर सकती है.