Letters to God Tradition: जब शब्द मौन हो जाते हैं और मन की पीड़ा व्यक्त नहीं हो पाती, तब लोग ईश्वर से संवाद के लिए एक चिट्ठी का सहारा लेते हैं. भारत के कई हिस्सों में अब यह परंपरा फिर से लौट रही है, जहां भक्त अपनी बात भगवान तक पहुंचाने के लिए पत्र लिखते हैं, कभी भावनाओं के साथ, कभी मन्नतों के साथ और कभी केवल आभार व्यक्त करने के लिए.

सबसे चर्चित उदाहरणों में शामिल है उत्तराखंड का कालिमठ मंदिर, जहां भक्त मां काली को पत्र लिखते हैं और मंदिर प्रांगण में एक विशेष स्थान पर रखते हैं. ऐसी ही परंपरा राजस्थान के खाटूश्याम मंदिर, महाराष्ट्र के सिद्धिविनायक मंदिर, और शिर्डी के साईं बाबा मंदिर में भी देखी जाती है, जहां चिट्ठियों की झोली रोज़ ईश्वर के चरणों में अर्पित की जाती है.

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Letters to God Tradition

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कैसे पहुँचती है बात भगवान तक? (Letters to God Tradition)

भक्त एक साधारण कागज़ पर अपने भाव, प्रश्न, पीड़ा या प्रार्थना लिखते हैं और उसे मंदिर के विशेष पात्र, दानपेटी या पत्र पेटी में डाल देते हैं. कई मंदिरों में पुजारी इन पत्रों को पूजा के समय भगवान के चरणों में अर्पित करते हैं. कुछ जगहों पर यह चिट्ठियां जलाकर आहुति के रूप में भी चढ़ाई जाती हैं. मान्यता है कि इससे बात सीधे ईश्वर तक जाती है.

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क्यों मानी जाती है यह विधि प्रभावी? (Letters to God Tradition)

धार्मिक मान्यता कहती है कि जब हम लिखते हैं, तो मन की एकाग्रता बढ़ जाती है और वह भावना अधिक स्पष्ट रूप से ईश्वर तक पहुँचती है. यह प्रक्रिया केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि भक्ति और ध्यान का एक रूप भी बन जाती है. पत्र लिखना उस आत्म-प्रार्थना जैसा है जिसमें कोई दिखावा नहीं, केवल सच्ची भावना होती है.

आधुनिक युग में भी जारी है परंपरा (Letters to God Tradition)

आज भी डाक द्वारा या ऑनलाइन पोर्टल से भगवान को पत्र भेजने की सुविधा कुछ मंदिरों ने शुरू की है. जैसे कि वैष्णो देवी ट्रस्ट, सिद्धिविनायक ट्रस्ट आदि में ऑनलाइन मन्नत या पत्र सेवा उपलब्ध है.

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