दिल्ली. एलआईसी में देश की अधिकांश जनता की जमा-पूंजी है और वह प्रतिवर्ष अपनी बचत से हजारों-लाखों रुपये निकालकर एलआईसी की पॉलिसी में डालता है. इस पैसे के सहारे उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है.

केन्द्र सरकार ने देश में सरकारी बैंकों के सामने खड़ी एनपीए की समस्या को निपटाने की नई कवायद शुरू की है. साल के शुरुआत में बैंकों को एनपीए से मुक्त कराने के लिए जनवरी में केन्द्र सरकार ने 2.1 लाख करोड़ रुपये के रीकैपेटलाइजेशन प्रोग्राम को मंजूरी दी. वहीं अब वह सर्वाधिक एनपीए अनुपात वाले IDBI  बैंक को देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के हवाले करने की तैयारी में है.

एलआईसी में देश की अधिकांश जनता की जमा-पूंजी है और वह प्रतिवर्ष अपनी बचत से हजारों-लाखों रुपये निकालकर एलआईसी की पॉलिसी में डालता है. इस पैसे के सहारे उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है. लेकिन अब केन्द्र एक सरकारी बैंक को बचाने की कवायद में इसे एलआईसी के हवाले करने जा रही है. इसका साफ मतलब है कि आप प्रतिवर्ष जो पैसा एलआईसी की पॉलिसी के लिए बतौर प्रीमियम जमा करते हैं अब उसका इस्तेमाल बैंक को डूबने से बचाने के लिए किया जाएगा.

सवाल क्यों?

लेकिन क्या यह फैसला देश में एलआईसी के ग्राहकों के हित में है? क्या केन्द्र सरकार का यह फैसला इस बात की गारंटी देता है कि इससे आईडीबीआई की समस्या दूर हो जाएगी? और अंत में क्या इस फैसले से एलआईसी के ग्राहकों का उनके जीवनकाल का सबसे बड़ा निवेश सुरक्षित रहेगा?

अभी क्या है IDBI बैंक की हालात?

मौजूदा समय में देश के 21 सरकारी बैंकों में शुमार IDBI बैंक में केन्द्र सरकार की 85 फीसदी हिस्सेदारी है. वित्त वर्ष 2018 के दौरान केन्द्र सरकार ने अपने रीकैपिटलाइजेशन प्रोग्राम के तहत बैंक की मदद करने के लिए 10,610 करोड़ रुपये डाला है. वहीं IDBI बैंक देश के बीमारू सरकारी बैंकों में सर्वाधिक एनपीए अनुपात वाला बैंक है.

बीते कुछ वर्षों के दौरान बैंकिंग सुधार के नाम पर केन्द्र सरकार ने बीमार पड़े सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को कम करने की रणनीति पर काम किया है. इस रणनीति के तहत IDBI से हिस्सेदारी कम करना केन्द्र सरकार के लिए सबसे आसान है क्योंकि IDBI बैंक नैशनलाइजेशन एक्ट के तहत नहीं आता और हिस्सेदारी कम करने में उसे किसी तरह की कानूनी अड़चन का सामना नहीं करना पडेगा.

मौजूदा समय में बिना बैंक हुए भी एलआईसी लोन मार्केट का एक बड़ा खिलाड़ी है. वित्त वर्ष 2017 के दौरान एलआईसी ने 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक का कर्ज बाजार को दिया था और इसी कर्ज के कारोबार को बनाए रखने के लिए उसने लगभग सभी सरकारी बैंकों में कुछ न कुछ हिस्सेदारी खरीद कर रखी है. लेकिन अब खुद बैंक की भूमिका में आ जाने के बाद एलआईसी के सामने भी वही चुनौती होगी जिसके चलते ज्यादातर सरकारी बैंक कर्ज बांटकर एनपीए के जाल में फंसे हैं. वहीं इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि एलआईसी के पास स्वतंत्र रूप से बैंक चलाने की क्षमता है और वह जनता के पैसे को सुरक्षित रखने में किसी अन्य सरकारी बैंक से ज्यादा सक्षम है.