पवन दुर्गम, बीजापुर। इंटर स्टेट कॉरिडोर पामेड़ अब प्रकाशविहीन नहीं रहा, यहां अब रात में मिट्टी के दिये नहीं बल्कि बल्ब जला करेंगे, दिये की धुंधली रोशनी का युग पामेड़ से समाप्त होने को है. यूपीए सरकार में तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी वर्ष 2011-12 में पामेड़ का दौरा कर वहां की स्थिति का जायजा लिया था. कुछ दिन पूर्व कवासी लखमा और बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने इस ओर ध्यानाकर्षित भी किया था. तेलांगाना के चेरला से लगे तिप्पापुरम से पामेड़ तक करीब 10 किमी तक बिजली पहुंचाई जा रही है, जिसमें मंत्री कवासी लखमा और बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी का महत्वपूर्ण प्रयास रहा है.

पामेड़ नक्सली इलाके के साथ साथ वनाच्छादित घने वनों से घिरा अभयारण्य क्षेत्र है. बीजापुर जिला मुख्यालय से आवापल्ली- बासागुड़ा होते करीब 48 किमी का सफर नक्सल दहशत और ऊबड़खाबड़ सड़कों की वजह से असंभव है. बारिश के दिनों में यहां सड़कें नदी नालों से भर जाती हैं. जिसकी वजह से पामेड़ और ज्यादा संवेदनशील और खतरनाक टापू में तब्दील हो जाता है. प्रदेश से कटा यह इलाका पूरी तरह से तेलांगाना के चेरला- भद्राचलम और वेंकटापुरम पर आश्रित और जीवित रहने को मजबूर है.

सड़क बनी वरदान

चेरला से पामेड़ तक डामरीकरण सड़क बनी है. जिससे घंटों का सफर अब मिनटों का रह गया है. यह सड़क पामेड़वासियों के लिए वरदान साबित हो रही है. पामेड़ तक जाने का दूसरा और कम रिस्क वाला सड़क है बीजापुर- भोपालपट्टनम-तारलागुड़ा मार्ग. इन मार्गों से तेलांगाना के वेंकटापुराम- कॉलनी- चेरला होते हुए पामेड़ पहुंचा जा सकता है, जो कि नेशनल हाइवे और स्टेट हाइवे के जरिये पामेड़ तक जाती है. मगर यह सड़क लंबी होने की वजह से ज्यादा समय लेती है. ज्यादातर पामेड़ वासी बारिश के दिनों में बीजापुर आने के लिए इस सड़क का इतेमाल करते हैं.

नक्सलियों की पैठ वाला इलाका

पामेड़ का नाम बड़े नक्सली लीडर और नक्सली घटनाओं के बाद ही जेहन में आता है. यही वजह थी कि पामेड़ सड़क बनने के दौरान दर्जनों बार नक्सलियों से सुरक्षाबलों ने लोहा लिया था. पामेड़ क्षेत्र तेलांगाना से लगा सरहदी इलाका है जिसकी वजह से नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना माना जाता है. जहां बड़े नक्सली लीडर पामेड़ क्षेत्र में बेख़ौफ़ रहते हैं. पामेड़ सड़क को जोड़ती तेलांगाना की आखिरी चौकी तिप्पापुरम है.

नक्सली दहशत ऐसा की हेलिकाप्टर से आता है राशन

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर बसा प्रदेश का अंतिम ग्राम पामेड़ सड़क मार्ग से कटे होने के कारण यहां वर्षभर आपदा की स्थिति बनी रहती है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आज भी जवानों के साथ ही ग्रामीणों के लिए भी राशन हेलिकॉप्टर से पहुंचता है. आवास, पानी, जैसे मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे जांबाजों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी मोहताज होना पड़ता है. 1984 में पामेड़ में थाने की स्थापना हुई थी. वैकल्पिक व्यवस्था के तहत पुलिस बल माओवादियों से लोहा लेते डटे हुए हैं. बिजली के पहुंचने से ग्रामीण और सुरक्षाबल के जवानों को भी सहूलियत होगी.

पामेड़ वासियो की मांगों की है लंबी लिस्ट

वहीं पामेड़ क्षेत्रवासी लंबे समय से सरकारी योजनाओं के लाभ से महरूम रहे हैं. बिजली, पानी, शिक्षा स्वाथ्य की सबसे बड़ी बड़ी समस्या बीते एक दशक में थोड़ी कम जरूर हुई है. वहीं अभी भी ग्रामीणों की मांगों की फेहरिस्त लंबी है, जिसमें मुख्यरूप से सर्वसुविधायुक्त हॉस्पिटल, पामेड़ में पीने के पानी की वजह से किडनी की समस्या की वजह से फिल्टर, एम्बुलेंस, पानी टैंकर, अम्बेडकर पारा में सीसी सड़क, वनाधिकार पट्टा आदि प्रमुख मांगे हैं.

जल्द होगी मांगे पूरी- विधायक

बस्तर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष और विधायक विक्रम शाह मंडावी ने बताया कि बिजली पामेड़ तक पहुंचाना मुश्किल था लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दूरदृष्टि से यह अब आसान हो गया है. 15 सालों से भाजपा सिर्फ मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखा रही थी, पामेड़वासियो से भाजपा का कोई सरोकार कभी रहा ही नहीं. पामेड़ क्षेत्रवासियों की जो अन्य मूलभूत मांगे हैं उनको भी जल्द पूरी की जाएंगी. आने वाले दिनों में पामेड़ की हर समस्या का जल्द निदान हो इस ओर प्रयास होगा.