पूर्णचन्द्र रथ
संकट की घड़ी में मुखिया सबसे आगे होता है। लेकिन कोरोना से संकट के दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गायब हैं। मोदी सार्क देशों की बैठक में शामिल हो रहे हैं, अलग-अलग बैठकें कर रहे हैं। लेकिन लंबे अरसे से जनता से संवाद नहीं कर रहे हैं। ये उस दौर की बात है जब सबसे निष्ठुर और असंवेदनशील माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रोज़ मीडिया को कोरोना के बारे में ब्रीफ कर रहे हैं। रिपोर्टर्स के हर सवाल का जवाब दे रहे हैं

पहली बार 24 मार्च को लॉक डाउन की घोषणा करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से टीवी के ज़रिए मुखातिब हुए। मोदी ने 21 दिन के लिए लॉक डाउन की घोषणा मात्र 4 घंटे के नोटिस पर की। मोदी ने लोगों से ताली और थाली बजाने की अपील भी की। ताकि कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को हौसला मिल सके। उन्होंने कहा कि ”जान है तो जहान है”. जनता ने मोदी की बात पर भरोसा करके अपनी छतों और बालकनियों से थाली और डीजे तक बजाए। उनके इस सम्बोधन ने देश के लोगों में कोरोना से लड़ने में उत्साह भर दिया। उनके कई समर्थकों ने तो यहां तक संदेश दे दिया कि थाली बजाने से जो ध्वनि तरंगे निकलेंगी वो कोरोना को मार देंगी।
अक्सर रात को आने वाले नरेंद्र मोदी दूसरी बार 3 अप्रैल को सुबह मुखातिब हुए। मोदी ने 2 दिन बाद 5 अप्रैल को रात को 9 बजे जनता से 9 मिनट तक घरों में अंधेरा कर बाहर रोशनी करने को कहा। उनकी इस अपील के बाद पूरे देश में दूसरी दीवाली मनाई गई। सबने अपने घरों के आगे दिये जलाये। कट्टर समर्थकों ने पटाखे तक फोड़े। जिस देश में ऐसे बहित लोग हों जो मोदी जी को भगवान का अवतार तक मान लेते हों वहां ये अप्रत्याशित नहीं था.

प्रधानमंत्री मोदी ने इसके बाद 11 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में ”जान भी जहान भी” की बात की। मोदी इसके बाद 14 अप्रैल को जनता के सामने आए। उन्होंने लॉक डाउन 3 मई तक बढ़ाने का ऐलान किया। उन्होंने 20 अप्रैल के बाद रियायत देने का भी ऐलान किया। यहां तक पंहुचते-पंहुचते मज़दूर बेहाल हो चुके थे और वे वापस लौटने के लिए देश के अलग अलग हिस्सो से अपने घर के लिए पैदल ही रवाना हो गए। उनके सम्बोधन में प्रवासी मज़दूरों और अर्थव्यवस्था को संबोधित न करने पर उनकी आलोचना भी हुई.

उसके बाद केंद्र सरकार के फैसलों की जानकारी गृह मंत्रालय के हवाले से आनी शुरू हो गई । 3 मई के बाद जब तीसरी बार लॉक डाउन बढ़ाने का ऐलान हुआ तो यह ऐलान करने वाले नरेंद्र मोदी नहीं थे बल्कि गृह मंत्रालय ने आदेश जारी कर दिया. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी अलग अलग बैठ के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग लेते रहे उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही सार्क की बैठक में हिस्सा लिया लेकिन जनता से टीवी के ज़रिए मुखातिब नहीं हुए। अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में जरूर वे हाजिर हुए और कोरोना से जीत की उम्मीद जताई.

लेकिन इस बीच कई मोर्चों पर नई परेशानियां और चुनौतियां आनी शुरू हो चुकी हैं। अर्थव्यवस्था और रोज़गार के मोर्चे पर देश गंभीर संकट में दिख रहा है। अवाम इन मसलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात सुनना चाहती है। लेकिन प्राधनमंत्री गायब हैं। लॉक डाउन- तीन का एलान गृह मंत्रालय कार्यालय की ओर से होने की वजह से इससे प्रभावित लोगों में चिंता और बढ़ गई है। ऐसे समय में जब कोरोना संक्रमण इटली की रफ्तार हासिल कर चुका है,प्रधानमंत्री का गायब होना उनके कट्टर समर्थकों का हौसला भी कमजोर कर रहा है.

दरअसल, कोरोना वायरस का हर विपरीत प्रभाव जन-धन और मन पर होने वाला है। जन की हानि रोज़ाना आंकड़ो के ज़रिए सामने आ रही है लेकिन धन और लोगों के मन की हानि का सही अंदाज़ा इसके ख़त्म होने के बाद ही मिलेगा.

दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत का भी हाल बेहद खराब हो सकता है। करोड़ों लोग फिर से ग़रीबी रेखा के नीचे जा सकते है। ग़रीब किसान और मज़दूरों के सामने खाने-कमाने का संकट गहरा सकता है। इन चिंताओं पर प्नधानमंत्री देश को विश्वास क्यों नहीं दे रहे हैं। परेशान मध्यवर्ग भी है। इस वर्ग के लाखों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं या फिर उनके वेतन घट सकते हैं,बल्कि बड़ी कटौती हो ही रही। फिर उन्हें क्या करना चाहिए। किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए? मोदी जी ने बिना सामने आये बड़े कारोबारियों का कर्ज पहले ही माफ कर दिया। लेकिन मध्यम और लघु उद्योगों पर बैंकों का काफ़ी कर्ज़ हो सकता है। उनके नुकसान की भरपाई कैसे होगी? एक बड़ी चिंता है कि सूरत जैसे शहरों में मज़दूरों ने न जाने का फैसला किया है। अब इन शहरों में कारखाने कैसे चलेंगे?

इन तमाम संभावित मुश्किलों के सामने मोदी सरकार की क्या भूमिका होगी? इस हालात से निपटने की क्या तैयारियां हैं… जनता जानना चाहती है ।

लेकिन ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री इसलिए सामने नहीं आ रहे हैं कि अब देश का धैर्य जवाब दे रहा है और देश का सामना करना आसान नहीं रह गया है ? गरीबों को ठोस राहत नहीं दी जा रही है और इस तरह की खबरें हैं कि यह पूरा माहौल बीजेपी के खिलाफ जा रहा है इसलिए अब प्रधानमंत्री जनता के सामने आने से बच रहे हैं ! यदि ऐसा है तो यह बहुत ही दुर्भाग्यजनक बात है ।

आज भी पूरे देश में मजदूर भूखे ,प्यासे, बाल-बच्चों के साथ घर पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। कहीं राहत नहीं है । अभी तक जितनी रेल गाड़ियां चली हैं वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही हैं। भाजपा शासित कर्नाटक ने तो हद ही कर दी।उस राज्य के मुख्यमंत्री ने बिल्डरों से मुलाकात के बाद ट्रेन ना लेने का फैसला कर हैरत में डाल दिया,और दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ जहां के मजदूर पूरे देश में शायद सबसे ज़्यादा होंगे उस राज्य को अभी तक एक भी ट्रेन नहीं मिली है। क्या ये भेदभाव है?अगर है तो इसका जवाब मजदूर किससे मांगें ?

इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी देश के इन गरीबों के हक़ में सामने आई हैं । उन्होंने ऐलान किया है कि मजदूरों की टिकट का खर्च कांग्रेस पार्टी उठाएगी । तब केंद्र सरकार सिर्फ रेलवे के आंकड़े भर जारी कर यह बता रही है कि मजदूरों की टिकट के नाम पर सम्बंधित राज्य सरकारों से 15 प्रतिशत खर्च बस लिया जा रहा है ! हकीकत ये है कि जिस 85 फीसदी की बात रेलवे कर रहा है उसमें से 75 फीसदी सब्सिडी तो पहले ही जनता को दी ही जा रही है । प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा पूरे देश को है कि जब संकट के समय उसने अपना धैर्य दिखलाया तो अब केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि देश का भरोसा कायम रखें- स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सुनिश्चित करना चाहिए ।

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस समय देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि हो गई! ये किसके मन की बात है प्रधानमंत्री जी ?