हरियाली अमावस्या पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। हरियाली अमावस्या की एक प्राचीन कथा भी है जो इस पर्व के महत्व को दर्शाती है। इस कथा को सुनने से भगवान शिव पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हरियाली अमावस्या की व्रत कथा
कथा इस तरह शुरू होती है। बहुत समय पहले की बात है, एक प्रतापी राजा का शासन था, जिनका एक बेटा और बहू थी। एक दिन बहू ने चोरी-छुपे मिठाई खा ली और दोष चूहे पर मढ़ दिया। चूहा इस आरोप से बेहद क्रोधित हुआ और उसने बदला लेने की ठान ली। एक दिन, जब राजा के यहां कुछ मेहमान आए हुए थे। और राजा के कमरे में सो रहे थे, तो चूहे ने रानी की साड़ी वहां रख दी। सुबह जब मेहमानों की नींद खुली और उन्होंने रानी की साड़ी देखी, तो सभी हैरान रह गए। राजा को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने अपनी बहू को महल से निकाल दिया।
अब रानी हर शाम दीपक जलाकर ज्वार उगाने का काम करती और पूजा के बाद गुड़धानी का प्रसाद बांटती। एक दिन, राजा उसी रास्ते से गुजरे और उन्होंने उन दीयों की रौशनी देखी। महल लौटकर राजा ने सैनिकों को जंगल में जाकर वहां की जाँच करने का आदेश दिया। सैनिक जब उस पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि दीये आपस में बातें कर रहे थे, अपनी-अपनी कहानियाँ साझा कर रहे थे। एक शांत से दीये से सभी ने उसकी कहानी पूछी। उस दीये ने बताया कि वह रानी का दीया है और उसने सारी घटना विस्तार से सुनाई। उसने बताया कि रानी ने मिठाई चोरी कर आरोप चूहे पर लगा दिया था, उसके बाद चूहे ने रानी से बदला लेने के लिए उसकी साड़ी राजा के कमरे में जाकर रख दी लेकिन रानी इस बार रानी बेकसूर थी लेकिन फिर भी उसे महल से बाहर निकाल दिया गया था फिर भी वह सजा भुगत रही है। सैनिकों ने सारी बात राजा को बताई। राजा ने रानी को वापस महल बुलवाया, जहां रानी फिर से खुशी-खुशी रहने लगी।
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