धरती का तापमान और न बढ़े इसके लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलनों में नए लक्ष्य तय हो रहे हैं. तमाम देशों की इस जद्दोजहद के बीच लिथियम बैटरी एक नई उम्मीद बन कर उभरी है. अगर दुनिया लिथियम-आयन बैटरी पर चलने वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से अपनाने लगे तो धरती के वातारण में फैलने वाला अरबों टन कार्बन डाइक्साइड रुक जाएगा. लेकिन इलेक्ट्रिक गाड़ियों से पहले भी Lithium आयन वाली बैटरी हम रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल करते आ रहे हैं. कार मोबाइल लैपटॉप और न जाने कितने डिवाइस. अब पूरे विश्व में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियां की उत्पादों में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ Lithium का इस्तेमाल भी बढ़ गया है. ऐसे में पूरे विश्व पर लिथियम आयन का संकट गहरा होता जा रहा है.

लिथियम आयन का इस्तेमाल दुनिया भर में कई शक्तिशाली बैटरीओं में होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि लिथियम दुनिया का सबसे हल्का मेटल है. दुनिया भर में आने वाले चार-पांच सालों में ही Lithium आयन का बाजार करीब 250 करोड़ बिलियन डॉलर का होने वाला है. Lithium को व्हाइट ऑयल भी कहा जाता है.

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दुनिया भर में सबसे ज्यादा मात्रा में लिथियम आयन ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है. इसके बाद चिली और तीसरे स्थान पर चीन का नंबर आता है. बाकी देश भी इस लिथियम दौड़ में अपना हिस्सा चाहते हैं. जैसे कि मेक्सिको में सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच जंग छिड़ी है कि लिथियम भंडार पर किसका अधिकार है. फिलहाल तो मेक्सिको में Lithium आयन रिजर्व के अनुसार व्यवसायिक तौर पर बैटरीयां नहीं बन पा रही है. वहीं चीन को देखें तो वह बैटरी प्रोडक्शन के मामले में काफी आगे है. चीन के साथ मुकाबला करने के लिए पश्चिमी देशों में नई खदानें लाने की रेस चल रही है. दुनिया भर में कई देश लिथियम बैटरी प्रोडक्शन प्लांट बनाना चाहते हैं. लेकिन पूरा विश्व अभी चीन में बनने वाली Lithium आयन बैट्रीओं पर निर्भर करती है.

ग्लोबल प्रोडक्शन बढ़ तो रहा है लेकिन दुनियाभर में जितने Lithium आयन बैटरी की मांग है उसको पूरा करने में असमर्थ है. इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने वाली कंपनी रिवियन के सीईओ रॉबर्ट ने एक ट्वीट में कहा है कि पूरे विश्व के लिथियम प्रोडक्शन को मिला देने पर भी वह हमारे आने वाले 10 सालों की 10 फीसदी जरूरत को भी पूरा नहीं कर सकता. इलेक्ट्रिक गाड़ियां लिथियम बैटरी पर बहुत ज्यादा निर्भर है. स्मार्ट फोन में तो मात्र कुछ ग्राम लिथियम इस्तेमाल होता है लेकिन इलेक्ट्रिक कार बैटरी पैक में लगभग 10 किलो तक लिथियम का इस्तेमाल किया जाता है.

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ऐसे में लिथियम बैटरी के सस्ते होने पर इलेक्ट्रिक गाड़ियां ज्यादा लोगों के पास पहुंच पाती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो फॉसिल फ्यूल की खपत कैसे कम होगी? फिर क्लाइमेट चेंज से कैसे निपटेंगे ? लिथियम आयन महंगे होने पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर स्मार्टफोन और अन्य कई डिवाइस की कीमत भी बढ़ेंगे. ऐसे में इलेक्ट्रिक गाड़ियां सिर्फ अमीरों की शौक पूरा करने के काम आएंगे.

हमें अब तक यह भी ठीक ठीक नहीं पता है की धरती पर कुल कितने लिथियम रिजर्व बचे हैं. अगर हम लिथियम आयन को इस्तेमाल करते रहना चाहते हैं तो रिसाईकल करना ही एक रास्ता है. विश्व में लिथियम आयन के संकट को देखते हुए कंपनियां अभी से ही लिथियम आयन का सही इस्तेमाल और रीसाइक्लिंग पर ध्यान दे रहे हैं और इस तरह हम भविष्य के लिए सही तरीके से तैयार हो पाएंगे.