सुप्रीम कोर्ट(Suprem Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि दो वयस्क व्यक्ति आपसी सहमति से लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, तो इसे शादी के झूठे वादे के रूप में नहीं देखा जा सकता. इस स्थिति में महिला द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोपों को स्वीकार नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में यह माना जाएगा कि दोनों पक्ष समझदारी से और पूरी तरह से अपने निर्णयों के परिणामों को समझते हुए इस प्रकार के रिश्ते में शामिल हुए हैं.
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि यदि दो सक्षम वयस्क कई वर्षों तक एक साथ रहते हैं और सहमति से संबंध बनाते हैं, तो यह माना जाएगा कि उन्होंने अपने रिश्ते को अपनी मर्जी से चुना है और इसके परिणामों के प्रति जागरूक हैं. ऐसे में यह आरोप कि यह रिश्ता विवाह के वादे पर आधारित था, स्वीकार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी परिस्थितियों में यह दावा करना कि शारीरिक संबंध केवल विवाह के वादे के कारण बने, विश्वसनीय नहीं है, विशेषकर जब प्राथमिकी में यह उल्लेख नहीं किया गया कि शारीरिक संबंध केवल विवाह के वादे पर आधारित थे.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि लंबे समय तक चलने वाले लिव-इन रिलेशनशिप में दोनों पक्षों द्वारा विवाह की इच्छा व्यक्त करना संभव है, लेकिन यह इच्छा केवल इस बात का प्रमाण नहीं बनती कि यह संबंध शादी के वादे का परिणाम है. कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पिछले कुछ दशकों में समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जिसके चलते अधिक महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई हैं और अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हैं. इस बदलाव के परिणामस्वरूप लिव-इन रिलेशनशिप की संख्या में भी वृद्धि देखी गई है.
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने के बजाय, यह महत्वपूर्ण है कि यह देखा जाए कि संबंध कितने समय तक चला और दोनों पक्षों का व्यवहार कैसा रहा. इस आधार पर यह आकलन किया जा सकता है कि क्या यह संबंध आपसी सहमति से बना था, भले ही दोनों का इसे विवाह में बदलने का कोई इरादा हो या न हो.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की शिकायत पर दर्ज FIR को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने रविश सिंह राणा पर बलात्कार और मारपीट का आरोप लगाया था. मामले के अनुसार, राणा और महिला की पहली मुलाकात फेसबुक पर हुई, जिसके बाद वे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे. महिला का आरोप था कि राणा ने शादी का वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन जब उसने शादी के लिए दबाव डाला, तो राणा ने मना कर दिया और उसे धमकाते हुए जबरन संबंध बनाए.
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सुप्रीम कोर्ट ने राणा की याचिका को खारिज करने के हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए कहा कि केवल विवाह से इनकार के आधार पर आरोपी को बलात्कार के मामले में मुकदमे का सामना नहीं करना चाहिए. इसके अलावा, अन्य आरोपों जैसे कि मारपीट और दुर्व्यवहार के लिए भी कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए हैं.
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