रायपुर. यकृत शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों में से है. यकृत की कोशिकाएं आकार में सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं, परंतु ये बहुत कार्य करती हैं. एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक, यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा सकती है.

जिगर की विफलता के रोगों के रूप में विल्सन रोग, हेपेटाइटिस (यकृत शोथ), जिगर कैंसर, क्रोनिक जिगर की सूजन (यकृत चयापचय गतिविधि में परिवर्तन कर सकते हैं और अगर यह लंबे समय के लिए प्रभावित हो तो इसके हानिकारक प्रभाव से पूरा शरीर प्रभावित होता है.

ज्योतिष में कुंडली के यकृत का संबंध ग्रह गुरु है. गुरु का अपना रंग पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में बिलीरूबिन जाता है, तो शरीर के सभी अंगों को पीला कर देता है. ऐसा पित्त के बिगडने से भी होता है. गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है. पीलिया रोग में बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर में फैलता है. रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से. इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने में अपना महत्त्व रखते है.

इस प्रकार गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों में जन्मकुंडली एवं गोचर में होते हैं, तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है. जब तक गोचर और दशांतर दशा अशुभ प्रभाव में रहेंगे, तब तक जातक को पीलिया रोग रहेगा उसके उपरांत नहीं.

उपाय

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें.
पीले वस्त्र, रसीले फल और पीले फूलो का दान करें.
गाय को भीगे गेहू में गुड मिलाकर खिलाएं.
छाया पात्र का दान करें.