आशुतोष तिवारी, सुकमा। सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाएं धरातल पर उतारने प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है. लेकिन जिम्मेदारी नजर नहीं आ रही है. बात हो रही है बस्तर संभाग के आखिरी छोर कोंटा की. जहां दो पंचायतों के 2500 से ज्यादा ग्रामीणों की जिंदगी महज दो स्टाफ नर्सों पर निर्भर है. यह भी पढ़ें : भाजपा को जनादेश मिले एक साल हुआ पूरा, मुख्यमंत्री साय ने एक बार फिर जताया जनता का आभार…

सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक के बगड़ेगुड़ा और गोगुंडा पंचायत में 2500 से ज्यादा ग्रामीण गुजर-बसर करते हैं. लोगों को कभी स्वास्थ्य संबंधी समस्या आ जाए तो मानों मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता है, क्योंकि जिस स्वास्थ्य केंद्र पर ये लोग निर्भर हैं, वह महज दो स्टाफ नर्सों के भरोसे संचालित है.

बगड़ेगुड़ा और गोगुंडा पंचायत में दो नर्स किरण मरकाम और राजेश्वरी नाग गर्भावस्थआ में भी 24 घंटे अपनी सेवाएं दी रही हैं. इन नर्सों का कहना है कि अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन लोग हम पर निर्भर हैं. प्रसव से लेकर बुखार का इलाज तक हम यहीं करते हैं. बदहाल, सड़कों और घने जंगलों के बीच ये नर्सें जरूरत पड़ने पर रात में मरीजों के घर तक पहुंचती हैं.

यह इलाका नक्सल प्रभावित है स्वास्थ्य केंद्र की दीवारों पर नक्सलियों के नारे लिखे हैं रात में नर्सों को न केवल नक्सलियों का, बल्कि जंगली जानवरों का भी खतरा रहता है. राजेश्वरी बताती हैं कि रात में डर लगता है, लेकिन मजबूरी है. अस्पताल में सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं. बिजली की भी बड़ी समस्या है.

विषम परिस्थितियों में सेवाएं दे रहीं गर्भवती नर्सों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई राहत या विशेष सुविधा नहीं मलती है. किरण और राजेश्वरी जैसी नर्सें सिर्फ स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दे रहीं, वे इस इलाके के लिए उम्मीद की किरण हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार उनके संघर्ष को पहचानेगी और उनके लिए कुछ अन्य व्यवस्था करेगी? क्या इसकी जानकारी जिले के कलेक्टर महोदय के पास है?