रायपुर- लाॅकडाउन के बीच छत्तीसगढ़ में फंसे दूसरे राज्यों के मजदूरों को राहत देने की सरकारी कवायद महज बनावटी तस्वीर बनकर रह गई है. बेबस और लाचार मजदूरों को सिस्टम की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. पहले कोरोना वायरस ने उनकी जिंदगी की गाड़ी को बेपटरी किया, अब व्यवस्थाओं की चोट ने अधमरा छोड़ दिया है. सामने आ रही तस्वीरें बेहद भयावह है.

बीते सोमवार को नागपुर से पैदल चलकर कोलकाता जा रहे 22 मजदूरों को रायपुर पुलिस ने उस आश्रय स्थल पर छोड़ दिया था, जिसका जायजा लेने हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहुंचे थे. तब उन्होंने मजदूरों को आश्वासन दिया था कि जब तक वह यहां है, राज्य के मेहमान हैं. उन्हें किसी तरह की कोई तकलीफ होने नहीं दी जाएगी. इस बीच अधिकारियों की नाफरमानी देखिए कि सूबे के मुखिया का आश्वासन भी ताक पर रख दिया गया. कोलकाता के रहने वाले इन मजदूरों को आश्रय स्थल में जगह नहीं मिली, बल्कि उन्हें बार्डर तक छोड़ने का आदेश दिया गया, लेकिन उन्हें बार्डर तक न जाकर बीच रास्ते में ही छोड़ दिया. सड़क पर अब ये मजदूर सुकून तलाश रहे हैं, जो उनसे मीलों दूर है.

आश्रय स्थल पर मौजूद सरकारी नुमाइंदे ही इस बात की तस्दीक करते हैं कि पुलिस की जिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने सड़क पर चल रहे मजदूरों की सुध लेकर आश्रय स्थल तक छोड़ा, उसमें तैनात जवानों को सराहना की बजाए जिला पंचायत सीईओ की लताड़ मिली. यहां लाए गए मजदूरों से पूछा गया कि वह क्या चाहते हैं? जवाब में मजदूरों ने कहा कि वह अपने घर जाना चाहते हैं, इसके बाद पेट्रोलिंग टीम को नसीहत दी गई कि मजदूरों को बार्डर तक छोड़ दिया जाए. आश्रय स्थल में नाश्ता कराकर गाड़ी उन्हें लेकर निकली जरूर, लेकिन बार्डर की बजाए आरंग में ही छोड़ वापस लौट आई. वहां से मजदूर पैदल ही कोलकाता की ओर रवाना हुए. आश्रय स्थल में मजदूरों की सेवा में जुटी समाजसेवी मंजीत कौर बल ने कहा कि-

राह चलते मजदूरों के सामने सबसे बड़ी मुसीबत है कि उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है. बहुत कम लोग हैं, जो इनके भोजन-पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. गर्मी तेज पड़ रही है. लंबा सफर है, थक भी रहे हैं, लेकिन उन्हें अन्य जिलों में किसी तरह का परिवहन नहीं मिल रहा. उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है. रायपुर पहुंचने के बाद ही उन्हें आश्रय गृह लाया जाता है. लोगों की नजर में आने के बाद ही शेल्टर होम तक मजदूरों को पहुंचाया जा रहा है. अन्यथा कोई विशेष व्यवस्था नजर नहीं आ रही है. पूरे राज्य में प्रशासन की ओर से भी विशेष तैयारी नहीं है कि ऐसे मजदूरों को शेल्टर होम तक पहुंचाया जा सके. एक राज्य से दूसरे राज्य में मजदूर पहुंच रहे हैं. यह भी बेहद खतरनाक स्थिति है. एक राज्य से दूसरे राज्य और एक जिले से दूसरे जिले तक बगैर स्क्रीनिंग पहुंच रहे हैं. स्क्रीनिंग का न होना कोरोना का फैलना भी है.

इधर सोमवार को ही महाराष्ट्र के गोंदिया में कृषि से जुड़ा प्रशिक्षण लेकर युवाओं का एक दस्ता रायपुर में मिला. एक समाजिक संस्था ने करीब दर्जन भर युवाओं को खाना खिलाया और जिला प्रशासन से उन्हें आश्रय स्थल तक पहुंचाने की मदद मांगी. पुलिस की गाड़ी उन्हें लेकर निकली जरूर, लेकिन मंदिर हसौद के आसपास जाकर छोड़ दिया गया. तेलुगु भाषी होने की वजह से युवाओं को कई तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ा. एक ढाबा संचालक ने युवाओं से समाजिक संगठन के एक सदस्य को फोन पर सूचना दी. संगठन की सक्रियता के बाद दोबारा उन्हें आश्रय स्थल तक छोड़ा गया.

बताते हैं कि उच्च पदस्थ अधिकारियों की ओर से निर्देश दिया जा रहा है कि सड़क पर चल रहे मजदूरों को आश्रय स्थल तक न लाया जाए. कुछ समाजिक संगठनों के सदस्यों ने भी यह बताया है कि उन्हें जिला प्रशासन के अधिकारियों की ओर से फोन कर कहा गया है कि मजदूरों को आश्रय स्थल तक न भेजे. यह हाल तब है जब रायपुर में डोनेशन आन व्हील के जरिए बड़ी तादात में आम लोगों की मदद मिल रही है. इस मदद में न केवल राशन दिया जा रहा है, बल्कि आर्थिक सहयोग भी प्रशासन को मिल रहा है.

मजदूरों को बार्डर पर न छोड़ बीच रास्त में छोड़ने के मुद्दे पर रायपुर जिला पंचायत सीईओ गौरव कुमार सिंह ने अनभिज्ञता जाहिर की है. उन्होंने लल्लूराम डाट काम से कहा कि-

मुझे इसके बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है. आपके जरिए अभी पता चल रहा है. मेरे ज्यूरिडिक्शन में आश्रय स्थल एक पार्ट भर है. मैं कल पता कर इस बारे में कुछ बता पाऊंगा.

इधर मुख्यमंत्री बोले, दूसरे राज्यों के मजदूरों को बार्डर तक पहुंचाने की होगी व्यवस्था

इन तमाम तस्वीरों के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ से होकर अन्य राज्यों में जाने वाले मजदूरों को उनके राज्य की सीमा तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी. उन्होंने कहा कि ऐसे मजदूर जो छत्तीसगढ़ के रास्ते से होकर अपने राज्यों में जाएंगे उनके लिए यह प्रावधान किया गया है कि वो राज्य की सीमा पर बनाए गए चेकपोस्ट में अपना पंजीयन करा लें और वहीं पर रूके. उनके रूकने और भोजन की व्यवस्था रहेगी. भूपेश बघेल ने कहा है कि अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों को भी शीघ्र वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.