सुधीर साहू, रायपुर. छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से एक सीट राजनांदगांव सबसे हॉट सीटों में से एक है. राजनांदगांव लोकसभा सीट साल 1957 में अस्तित्व में आई. यहां पहली बार हुए चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी खैरागढ़ रियासत के राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह सांसद चुने गए. इस सीट पर साल 1957 से अब तक हुए 17 चुनाव में नौ बार कांग्रेस, आठ बार जनता पार्टी और भाजपा ने जीत दर्ज की. यहां राजपरिवार से दूर जाने के बाद 1999 के बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई है. इस बार बीजेपी ने सांसद संतोष पांडेय तो कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल को मैदान में उतारा है.

राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह राजनांदगांव से 1957 से 1962 के मध्य दो बार सांसद चुने गए. 1967 में राजपरिवार की पद्मावती देवी सांसद बनी. 1971 में कांग्रेस ने पद्मावती देवी का टिकट काटकर मुंबई के व्यवसायी रामसहाय पांडे को टिकट दी, जिसमें पांडे की जीत हुई, लेकिन 1977 के लोकसभा चुनाव में रामसहाय को जनता पार्टी के मदन तिवारी ने करारी शिकस्त दी. फिलहाल राजनांदगांव लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है.

लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम

2019 के चुनाव में राजनांदगांव सीट पर भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय ने जीत हासिल की थी. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी भोलाराम साहू को एक लाख 11 हजार 966 मतों से हराया था. बीजेपी के संतोष पांडे को 6.62 लाख वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के भोलाराम साहू को 5.50 लाख वोट मिले. बीएसपी की रविता धुव्र 17,145 मत हासिल कर तीसरे स्थान पर रही थी. कुल मिले मतों में बीजेपी को 50.68, कांग्रेस को 42.11, बीएसपी को 1.31, और नोटा को 1.49 प्रतिशत मत हासिल हुए थे.

1982 में इंदिरा गांधी ने किया था रोड शो

तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी वर्ष 1982 में राजनांदगांव जिले के मानपुर पहुंची थी. तब उन्होंने सांसद शिवेंद्र बहादुर सिंह के साथ आदिवासियों के हित की लड़ाई लड़ने वाले लालश्याम शाह से मुलाकात की थी. दोनों के आग्रह करने पर इंदिरा गांधी ने मानपुर में रोड शो किया था. इंदिरा भिलाई से सड़क मार्ग होकर मानपुर पहुंची थी. इसके बाद 1988 में प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र के भोरमदेव पहुंचे थे, जहां उन्होंने बैगा प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी.

राजनांदगांव लोकसभा का इतिहास

साल 1957 से अब तक हुए 17 चुनाव में यहां से नौ बार कांग्रेस, आठ बार जनता पार्टी और भाजपा ने जीत दर्ज की. यहां साल 1991 तक खैरागढ़ राजपरिवार का दबदबा रहा, लेकिन राजपरिवार से दूर जाने के बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई. राजनांदगांव के संसदीय इतिहास में सबसे अधिक सात सांसद खैरागढ़ से चुने गए हैं. साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव का पासा भाजपा के पक्ष में ऐसे पलटा कि कांग्रेस यहां दोबारा जीत दर्ज नहीं कर पाई. हालांकि वर्ष 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के देवव्रत सिंह ने जीत हासिल की थी. इसके बाद से अब तक कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में हार का ही सामना करना पड़ रहा है.

जानिए जातीय समीकरण

जातिगत समीकरण की बात की जाए तो राजनांदगांव लोकसभा सीट पर पिछड़ा वर्ग की आबादी अधिक है. यहां साहू समाज का दबदबा है. आदिवासी और लोधी समाज का भी वर्चस्व है. 26 जनवरी 1973 को दुर्ग से अलग होकर राजनांदगांव जिला अस्तित्व में आया. तब इसमें कवर्धा भी शामिल था, जो अब अलग जिला बन गया है. राजनांदगांव लोकसभा के अंतर्गत विधानसभा की कुल आठ सीटें आती हैं. इनमें खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला-मानपुर, कवर्धा और पंडरिया शामिल हैं.

अब तक हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम

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