राजकुमार भट्ट कांकेर. लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. महासमुंद और राजनांदगांव के साथ कांकेर लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को चुनाव होगा. राजधानी रायपुर और जगदलपुर के बीचो-बीच स्थित नक्सल प्रभावित कांकेर बस्तर की ही तरह वक्त के साथ करवट बदलते हुए कांग्रेस से भाजपा के गढ़ में तब्दील हो चुका है. लेकिन विधानसभा में मिले बहुमत से उत्साहित कांग्रेस इस बार भाजपा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है. आइए जानते हैं कांकेर लोकसभा सीट के समय के साथ बदलते समीकरण को.

प्रथम सांसद टीएलपी शाह

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कांकेर लोकसभा सीट में कांकेर के साथ भानुप्रतापपुर, अंतागढ़, केशकाल, सिहावा, संजारी बालोद, डौंडीलोहारा, गुंडरदेही विधानसभा सीट शामिल हैं. लोकसभा क्षेत्र के तौर पर कांकेर का अस्तित्व 1967 में आया. तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए जनसंघ के त्रिलोकशाह लाल प्रियेन्द्र शाह ने जीत हासिल की. लेकिन यह जनसंघ की पहली और आखिरी जीत साबित हुई. इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर अरविंद नेताम ने जीत हासिल की,

अरविंद नेताम ने दिल्ली तक बनाई पहचान

इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में पूरे देश में चल रही कांग्रेस विरोधी लहर के बीच जनता पार्टी के अघन सिंह ठाकुर ने जीत हासिल कर बता दिया कि आदिवासी बहुल कांकेर भले ही आवागमन के लिहाज से देश के अन्य हिस्सों से पिछड़ा हो, लेकिन राजनीतिक तौर पर देश के अन्य हिस्सों से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है. लेकिन यह जीत भी जनसंघ की तरह जनता पार्टी के लिए पहली और आखिरी जीत रही. इसके बाद अरविंद नेताम इसके बाद ने लगातार 1980, 1984 और 1989 और 1991 में जीत दर्ज कर न केवल तत्कालीन मध्यप्रदेश में बल्कि राष्ट्रस्तर पर सशक्त आदिवासी नेता के तौर पर अपनी मौजूदगी जताई.

सशक्त आदिवासी नेता बनकर उभरे पोटाई

अरविंद नेताम

डेढ़ दशक तक अपराजित रहने के बाद मालिक मकबूजा प्रकरण में अरविंद नेताम का नाम सामने आने के बाद 1996 में उनकी पत्नी छबिला नेताम ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा. चुनाव में तो छबिला जीत गईं, लेकिन इसके बाद के चुनाव में अरविंद नेताम के साथ कांग्रेस की भी जीत की परिपाटी टूट गई. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने सोहन पाटाई के साथ अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई. नेताम के बाद सोहन पोटाई ही ऐसे सशक्त दावेदार हुए जिन्होंने एक बार नहीं बल्कि चार बार जीत हासिल की. सन् 1998 में पहली जीत हासिल करने के बाद वर्ष 1999, वर्ष 2004 और वर्ष 2009 में भाजपा को जीत दिलाई. लेकिन 2014 के चुनाव में भाजपा ने उनके स्थान पर विक्रम उसेंडी को टिकट दिया और उन्होंने कांग्रेस की फूलोदेवी नेताम को करीब 35 हजार वोटों से पराजित किया.

2019 के चुनाव में कांग्रेस-भाजपा दोनों में नए चेहरेकड़ा मुकाबला
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है. दोनों ही दलों ने इस बार बिल्कुल नए चेहरे को मैदान में उतारा है. कांग्रेस से बीरेश ठाकुर का मुकाबला भाजपा के मोहन मंडावी से है. कांकेर के भीतर दोनों की लोकप्रियता जनता के बीच में बराबरी की बताई जाती है. मतलब दोनों नेताओं की छवि मिलनसार है.

नेताम और पोटाई की सियासी गठजो़ड़ का दिखेगा असर
कांकेर लोकसभा में इस बार भाजपा के सामने चुनौती ज्यादा है. क्योंकि छत्तीसगढ़ में अब कांग्रेस की सत्ता है. मतलब सत्ता परिवर्तन का असर लोकसभा में दिख सकता है. लेकिन सबसे अहम कांकेर की राजनीतिक में है अरविंद नेताम और सोहन पोटाई. अरविंद नेताम की कांग्रेस में जहां वापसी हो चुकी है वहीं सोहन पोटाई 2014 चुनाव में टिकट कटने के बाद से भाजपा छोड़ चुके हैं. सियासत परे इन दिनों अब नेताम और पोटाई की जोड़ी की खूब चर्चा होती है. पोटाई ने सर्व आदिवासी समाज के जरिए अपनी राजनीति को जारी रखा है. वे एक तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के साथ दिखाई देते हैं. कभी एक-दूसरे के खिलाफ नेताम और पोटाई चुनाव लड़ते लेकिन अब सियासी गठजोड़ में दोनों एक साथ हैं.

कह सकते हैं कि भाजपा के लिए 2019 का चुनाव कांकेर में पहले की तरह अब आसान नहीं है. अब देखना होगा कि भाजपा अपने इस अभेद गढ़ को बचा पाती है या नहीं ?

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