दुर्ग से चंद्राकांत और राजकुमार भट्ट की विशेष रिपोर्ट
रायपुर. छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में से एक दुर्ग लोकसभा सीट कांग्रेस के गढ़ तौर पर जानी जाती है. लेकिन इस सीट पर 90 के दशक में ऐसा परिवर्तन भी आया कि यह भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट हो गई. सामान्य वर्ग की यह सीट पूरी तरह से पिछड़ा वर्ग से प्रभावित सीट है और यहां कुर्मी और साहू समाज के प्रतिनिधियों का वर्चस्व रहा है. दुर्ग जितना राजनीतिक तौर देश में प्रतिष्ठा रखता है, उतना ही भिलाई इस्पात संयंत्र की वजह से औद्योगिक क्षेत्र में भी. अबकी बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इलाके में लोकसभा चुनाव में कौन जीत हासिल करेगा, इसको लेकर सभी के मन में जिज्ञासा है.
कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़
आजादी से पहले ही अपने राजनीतिक गतिविधियों के लिए देश में अपना स्थान रखने वाला दुर्ग आजादी के बाद कांग्रेस के मजबूत गढ़ में तब्दील हो गया. सन् 1952 में जब यहां पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस प्रत्याशी वासुदेव श्रीधर किरोलीकर ने जीत दर्ज की. इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशियों के जीत का सिलसिला लगातर 1977 तक चलता रहा. 1957 और 1962 लोकसभा चुनाव में मोहनलाल बाकलीवाल, तो 1967 में वीवाय तामस्कर, 1971 और 1972 में हुए चुनाव में चंदूलाल चंद्राकर ने जीत हासिल की. 1975 में इंदिरा सरकार की ओर से लगाए गए आपातकाल असर कांग्रेस के गढ़ वाले इस सीट में भी देखने को मिला. सन् 77 में हुए चुनाव में यहां भारतीय लोक दल के मोहन भैय्या ने जीत दर्ज की. हालांकि, अगले चुनाव में यह असर सामाप्त भी हो गया.
कुर्मी समाज का रहा है दबदबा, चंदूलाल चंद्राकर रहे हैं शान
दुर्ग लोकसभा सीट में शुरुआती दौर से ही कुर्मी समाज का दबदबा रहा है. कुर्मी समाज बाहुल्य इस सीट पर अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर छा जाने वाले पत्रकार और राजनेता चंदूलाल चंद्राकर यहां के शान रहे हैं. आपातकाल के बाद जब 1980 में चुनाव हुआ तो एक बार फिर चंदूलाल चंद्राकर ने ऐतिसाहिक जीत दर्ज की. इसके बाद 84 में भी वे जीते लेकिन 89 के चुनाव में जनता दल के पुरुषोत्म कौशिक के हाथों वे हार गए. लेकिन 91 के चुनाव में फिर से चंदूलाल चंद्राकर ने शानदार वापसी करते हुए जीत हासिल की. इस जीत का प्रतिफल उन्हें केंद्र सरकार में पर्यटन, उड्यन कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी के तौर पर मिला.
ताराचंद साहू बने भाजपा के तारणहार, साहू समाज ने दिखाई ताकत
कांग्रेस के इस गढ़ में सेंध लगाया ताराचंद साहू ने. साहू समाज की ताकत के जरिए ताराचंद दुर्ग में भाजपा के तारणहार साबित हुए. 1996 में हुए चुनाव में दुर्ग से भाजपा का खाता खुला. और फिर यह सीट 2014 तक भाजपा के ही कब्जे में ही रही. इस सीट में लगातार चार बार ताराचंद साहू ने जीत दर्ज की. वहीं 2009 में सरोज पाण्डेय यहां से विजयी हुईं. 2014 का चुनाव मोदी लहर वाला चुनाव था. देश भर में मोदी लहर देखी गई. छत्तीसगढ़ के भीतर भी 11 सीटों में 10 सीटों में मोदी लहर का असर दिखा और भाजपा 10 सीटें जीती. लेकिन एक मात्र सीट दुर्ग बीजेपी हार गई. वजह साहू समाज की नाराजगी. नतीजा कांग्रेस के साहू उम्मीदवार ताम्रध्वज यहां से चुनाव जीत गए. यह साहू समाज की इस सीट पर ताकत थी.
इस बार दोनों उम्मीदवार कुर्मी समाज के, पारिवारिक रिश्तेदारी भी
2019 का यह चुनाव कई मायनों में बेहद दिलचस्प है. क्योंकि इस बार दुर्ग लोकसभा के चुनाव भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा लड़ रहे हैं. दोनों ही कुर्मी समाज से हैं. लेकिन दोनों ही उम्मीदवारों के बीच पारिवारिक रिश्तेदारी भी है. कांग्रेस से जहां दुर्ग की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले वासुदेव चंद्राकर की बेटी पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्राकर उम्मीदवार हैं, तो वहीं भाजपा से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भतीजा विजय बघेल भाजपा से प्रत्याशी है. यहां यह भी बता देना जरूरी होगा कि वासुदेव चंद्राकर भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू थे.
दुर्ग लोकसभा में विधानसभा सीटें और कांग्रेस-भाजपा का प्रभाव
दुर्ग लोकसभा के तहत कुल 9 विधानसभा सीटें आती है. इसमें दुर्ग जिले की 6 सीटें- दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रमीण, पाटन, भिलाई नगर, वैशाली नगर और अहिवारा, जबकि बेमेतरा जिले की तीन सीटें- बेमेतरा, साजा और नवागढ़ शामिल है. यह सभी सीटें पूरी तरह कांग्रेस की प्रभाव वाली सीटें मानी जाती है. वर्तमान में इस 9 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट वैशालीनगर पर ही भाजपा कब्जा है, बाकी सभी कांग्रेस के कब्जे में हैं. तो इन तमाम समीकरणों के बीच देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इलाके में जीत यहां किसकी होती कांग्रेस या भाजपा की.