रायपुर। श्री महामाया देवी मंदिर सार्वजनिक न्यास पुरानी बस्ती रायपुर के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा के तृतीय दिवस प्रभु राम का जन्म हुआ। इस दौरान पूरे मंदिर परिसर में ढोल बाजे, आतिशबाजी के साथ श्रद्धालु झूमने लगे और गाने लगे “भए प्रगट कृपाला दीन दयाला”। राम कथा के प्रवचनकर्ता वाणी भूषण पं. शंभू शरण लाटा महाराज ने कहा कि प्रभु राम कौशल्या के बेटे और राजा दशरथ के बेटे तो हैं ही, लेकिन वह जगत के पिता हैं। उन्होंने प्रवचन के दौरान बताया कि भगवान राम का जन्म अनेकों कारणों से हुआ है “राम जन्म हेतु अनेका”। वे असुरों का संहार करने, अहिल्या का उद्धार करने, अयोध्या में शिव का धनुष उठाने, संसार में सबसे सुंदर सीता से विवाह करने, सबका उद्धार करने, जगत का कल्याण करने, रावण और निषादराज के मुक्ति के लिए मनुष्य रूप में अवतरित हुए हैं।
श्री लाटा महाराज ने प्रवचन के दौरान श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान भाव से नहीं, भावना से समझते हैं। जीवन को धन्य करना है तो भगवान से संबंध बना लो। भगवान को अपनी माता-पिता, गुरु, भाई, मित्र, पुत्र बना लो, तो इस कलयुग में आपका जीवन धन्य हो जाएगा।
श्री लाटा महाराज ने सती के संबंध में विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि पत्नी वह है जो पति को पतन से बचा ले। पत्नी ऐसी होनी चाहिए जो पति को भवसागर से पार लगा दे। पति के दीर्घायु, सुख, शांति, समृद्धि के लिए महिलाएं अनेक व्रत उपवास करती हैं, किंतु पति कैसे प्रसन्न हो, उसका ध्यान नहीं रखतीं। पति प्रसन्न होंगे तो स्वयं ही सुख, शांति, समृद्धि की प्राप्ति होगी। जब अंधेरा हो तो रस्सी ही सांप लगती है। जब कोई संत ज्ञानी प्रकाश दे तो वास्तविकता का बोध होता है कि वह सर्प नहीं, रस्सी है। हमारा जीवन भी एक रस्सी जैसा है। कोई गुरु जीवन में प्रकाश प्रदान कर दे तो वास्तविकता का बोध हो जाता है। राम कथा सबको मुक्ति दिलाने वाली गंगा है। जटा से निकलने वाली गंगा में लोग डूब जाते हैं, लेकिन मुख से निकलने वाली कथा रूपी गंगा भवसागर से पार लगा देती है।
मनुष्य का कान सर्प का बिल है, आंख मोर पंख है, मस्तक कटे हुए तुमा के समान है। राम कथा में ताली बजाने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। कलयुग में पाप रूपी वृक्ष को काटने हेतु कथा रूपी कुल्हाड़ी है। प्रभु निर्गुण निराकार हैं ऐसा कहते हैं, लेकिन प्रभु निराकार होते हुए भी साकार हैं। जय विजय रूपी द्वारपालों ने महात्माओं को दरवाजे पर रोक दिया, तो उन्हें श्राप मिला और तीन जन्मों तक उस श्राप को भोगना पड़ा। प्रभु के प्रति भाव हो तो बहस का कोई स्थान नहीं है।
प्रभु के लिए केवल हां होना चाहिए। बुढ़ापा आ जाए तो भजन में लग जाना चाहिए। मनु शतरूपा ने वानप्रस्थ गमन कर हरि भजन किया तथा साम्राज्य, राजपाट, पुत्रों को सौंप दिया और जंगल की ओर चले गए। मनु शतरूपा अपने अगले जन्म में राजा दशरथ और माता कौशल्या के रूप में जन्म लेते हैं। वे तपस्या कर प्रभु से वरदान मांगते हैं कि आपके जैसा पुत्र होना चाहिए। प्रभु ने कहा, “मेरे जैसे होना संभव नहीं है, मैं स्वयं पुत्र के रूप में आपके परिवार में जन्म लूंगा।” भगवान शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी प्रकट होते हैं, तो माता प्रार्थना करती हैं कि हे प्रभु, मैं पुत्र की कामना कर वरदान प्राप्त की थी। प्रभु के रूप में नहीं, अतः आप अपना इस स्वरूप को त्याग कर बालक रूप धारण करें “तजेहु तात यह रूपा”।
मनुष्य के जीवन में सोना का पृथक-पृथक अर्थ है। रावण, विभीषण, कुंभकरण तीनों ने वरदान में सोना मांगा था, लेकिन रावण का सोने का अर्थ स्वर्ण की लंका है, विभीषण के सोने का अर्थ ना सोना, तथा कुंभकरण के सोने का अर्थ दीर्घ निद्रा है। रावण की भक्ति अटल और स्थिर है। एक बार एक चोर शिवलिंग में चढ़कर घंटी चुराने लगा। प्रभु जागृत हो गए, लोग फल, फूल, मिठाई, दूध चढ़ाते हैं। यह ऐसा कौन व्यक्ति है जो अपने पूरे शरीर को अर्पित कर दिया? तो वह बोलता है कि महाराज, मैं चोर हूं। प्रभु बोलते हैं कि चोर अच्छा है, लेकिन भक्त पक्का है।
सती-शिव संवाद में भगवती शिव से कहती हैं, “भवन नहीं है तो भवानी कहां रखेंगे?” त्रेता में रावण गौ और ब्राह्मण को नष्ट करने लगा। पृथ्वी बड़े-बड़े नदी, पर्वत, वृक्ष आदि सभी का भार सहती है, लेकिन दूसरों की निंदा नहीं सहा जाता। हरि सर्वत्र समाना अर्थात सबके लिए समान है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि प्रभु अयोध्या में हैं, तो क्या रायपुर में नहीं हैं? रायपुर में भी हैं। दिखाई नहीं देते, क्योंकि दूध में घी होता है, दूध से कोई पूड़ी नहीं बना सकता, जब तक दूध से घी को पृथक नहीं करेंगे। उससे पूड़ी नहीं बन सकती। जगत भी दूध के समान परमात्मा रूपी है, उसे प्रकट करना पड़ेगा।
प्रेम से भगवान प्रकट होते हैं। प्रेम प्रेम है, इसकी कोई परिभाषा नहीं है। प्रेम इंसान को शैतान बना देता है, प्रेम पत्थर को भगवान बना देता है, प्रेम से श्याम को राधा रानी, प्रेम ने मीरा के जहर को पी लिया। प्रेम परिचय को भी शैतान बना देता है। देवताओं को कहा, “चिंता मत करो, मैं धरती में मनुष्य रूप धारण कर आऊंगा।” भगवत कार्य में सहयोग करना चाहिए। सात पुरी में एक पुरी अयोध्या भी है।
महाराज श्री ने जन्मोत्सव के बाद कल प्रभु की बाल लीला की कथा का वर्णन करने का संदेश व्यास पीठ से दिया। न्यास समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा, मंदिर व्यवस्थापक पं. विजय कुमार झा और कोषाध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल ने श्रद्धालुओं से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होने की अपील की है।
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