राजस्थान के करौली का बहरदा गांव अपने स्वर्णिम इतिहास के लिए और अपनी प्राचीन धरोहरों के लिए दुनिया भर में विख्यात है. नदी किनारे सुनसान इलाके में बसे इस प्राचीन गांव को धनकुबेरों के नाम से जाना जाता है. यह गांव बहरदा मंडरायल उपखंड की डांग क्षेत्र का सबसे पुराना गांव है. इतिहासकारों के अनुसार इसकी स्थापना 1078 में हुई थी. यहां एक प्राचीन शिवालय है. जिसे पंचमुखी महादेव (शिव) के नाम से जाना जाता है.

यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां विराजमान शिव परिवार में शिवलिंग और नंदी महाराज के बीच जुड़ाव है. साथ ही मंदिर में प्राचीन पत्थर का पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है जो इस मंदिर को खास पहचान दिलाता है. Read More – Cheapest e-Car : जानें भारत की सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार PMV EaS-E की खूबियां और कब मिलेगी डिलीवरी …

लाल पत्थर से निर्मित शिव परिवार

इस पूरे क्षेत्र मे पंचमुखी महादेव का इकलौता मंदिर यही है जहां लाल पत्थर से निर्मित इस मंदिर में समस्त शिव परिवार विराजमान है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इसमें विराजमान शिव परिवार मे शिवलिंग और नंदी महाराज के बीच खास जुड़ाव है. जब भी कोई भक्त पंचमुखी शिवलिंग पर जल चढ़ाता है तो शिवलिंग से निकलकर यह जल नंदी महाराज के ऊपर चला जाता है. यहां सच्चे मन से की गई हर मनोकामना पूरी होती है और यहां सोमवार और शिव चौदस के दिन खास पूजा होती है. Read More – नए साल से पहले विमान कंपनियों ने किराया दोगुना बढ़ाया…

मंदिर में बनी हुई है एक खास पटिया

मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही एक पत्थर की पटिया बनी हुई है, जिसे स्थानीय लोग महात्मा की बैठक कहते हैं. इस मंदिर में ब्रह्मचारी नाम के एक साधु रहते थे. जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसी मंदिर में गुजारी थी. एकांत पसंद करने वाले शिवभक्त संत यहां पर धूनी तपते थे. संत की मृत्यु होने के बाद आज भी मंदिर में तपस्वी संत का चिमटा लगा हुआ है.