जयपुर. श्रीएकलिंगजी उदयपुर और मेवाड़ का सबसे विख्यात और विशाल मंदिर है. बताया जा रहा कि राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित कैलाशपुरी और राजसमंद जिले की सीमा पर 1344 साल पुराने एकलिंगजी मंदिर में दर्शन करने भक्त पैदल पहुंचते हैं. महाशिवरात्रि महोत्सव यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. शिव यहां एकलिंग के नाम से विराजित हैं.
श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर उदयपुर से लगभग 22 किमी और नाथद्वारा से लगभग 26 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर कैलाशपुरी नाम के स्थान पर स्थित है. पूर्वी भारत में जहां त्रिकलिंग की मान्यता रही है- उत्कलिंग, मध्यकलिंग और कलिंग. वहीं पश्चिमी भारत में एकलिंग की मान्यता है. भगवान शिव के प्राचीन मंदिर स्थित शिवलिंग की मूर्ति के चारों ओर मुख बने हुए हैं, अर्थात यहाँ पर भगवान शिवजी एक चतुर्मुखी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. मेवाड़ शैली में पत्थरों से निर्मित इस मंदिर को बहुत गोपनीय तरीके से बनाया गया था.
चतुर्मुखी है शिवलिंग
एकलिंगजी के चार चेहरों भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं, जो इस प्रकार हैं:-पूरब दिशा की तरफ का चेहरा सूर्य देव के रूप में पहचाना जाता है. पश्चिम दिशा के तरफ का चेहरा भगवान ब्रह्मा को दर्शाता है. उत्तर दिशा की तरफ का चेहरा भगवान विष्णु और दक्षिण की तरफ का चेहरा रूद्र स्वयं भगवान शिव का है.
मंदिर का इतिहास
श्री एकलिंगजी मेवाड़ के शासक और राजपूतों के मुख्य आराध्य देव हैं. कहा जाता है कि मेवाड़ में राजा तो उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन किया करता था. युद्ध पर जाने से पहले राजपूत श्री एकलिंग जी आशीर्वाद जरुर लेते थे. कहा जाता है कि डूंगरपुरराज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी. मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी. बाद में यह मंदिर टूटा और पुन: बना था. वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दी में करवाया था. इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं.
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